Friday, February 3, 2012

...मेरे हर क्षण के सार रहे!




जीवन जब भीषण आंधी था,
तुम प्यार की बन बयार बहे,
था धुत नशा, पग डगमग जब,
संबल-से पथ पर हर बार रहे.

रौंदे मेड़ों की जब किनार
धारा जीवन की बिखरी थी,
तुम ही सबल, संवर्धक-से
जुड़ते तिनकों के तार रहे.

तम था इतना, तुम क्या दिखते!
नयना भी मेरे क्या करते !
फिर भी कितनी उत्कंठा से,
मेरे हर क्षण के सार रहे!

था छोड़ चला इक सृष्टि मैं,
जब नवजीवन के स्वागत में,
उस पार प्रिये तुम ही तुम थे,
तुम ही हो जो इस पार रहे!



43 comments:

  1. बेहद सुंदर, पावन कामना है , ऐसा ही हो ,
    सकारात्मक विचार लिए पंक्तियाँ ..

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  2. जो जीवन सार बन कर रहा , उससे बढ़कर कौन ...

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  3. तम था इतना, तुम क्या दिखते!
    नयना भी मेरी क्या करतीं!
    फिर भी कितनी उत्कंठा से,
    मेरे हर क्षण के सार रहे!
    बिल्‍कुल सही कहा है ..आपने इन पंक्तियों में ..आभार

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  4. बहुत सुन्दर भाव्।

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  5. बहुत सुन्दर...
    प्यार में ही तो है जीवन का सार..

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  6. //तम था इतना, तुम क्या दिखते!
    नयना भी मेरी क्या करतीं!
    फिर भी कितनी उत्कंठा से,
    मेरे हर क्षण के सार रहे!

    waah...
    bahut sundar..

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  7. वाह ...बहुत ही अनुपम भाव लिये ..

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  8. बहुत खूबसूरत भाव संजोये हैं ..

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  9. तम था इतना, तुम क्या दिखते!
    नयना भी मेरी क्या करतीं!
    फिर भी कितनी उत्कंठा से,
    मेरे हर क्षण के सार रहे!

    बहुत खूब सर!

    सादर

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  10. रौंदे मेड़ों की जब किनार
    धारा जीवन की बिखरी थी,
    तुम ही सबल, संवर्धक-से
    जुड़ते तिनकों के तार रहे.

    सकारात्मक विचार की सुंदर कविता ....
    शब्दों पर पकड़ अच्छी है आपकी ....

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  11. अगर 'क्षणिकाएं' लिखते हों तो भेज सकते हैं 'सरस्वती-सुमन' पत्रिका के लिए ...
    जिसके अतिथि संपादन का कार्य भार इन दिनों मुझ पर है ....
    संक्षिप्त परिचय और चित्र के साथ ....

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  12. बेहद सुंदर अभिव्यक्ति....

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  13. तम था इतना, तुम क्या दिखते!
    नयना भी मेरी क्या करतीं!
    फिर भी कितनी उत्कंठा से,
    मेरे हर क्षण के सार रहे!
    आत्म - विश्वास और हौसला दिखलाती रचना.... :) शुभकामनायें.... :)

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  14. बहुत खूबसूरत भाव......

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  15. बहुत सुन्दर लिखा है ..अच्छी लगी..

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  16. रौंदे मेड़ों की जब किनार
    धारा जीवन की बिखरी थी,
    तुम ही सबल, संवर्धक-से
    जुड़ते तिनकों के तार रहे.

    सुंदर शब्दों में कृतज्ञता अभिव्यक्त हुई है इस रचना में।

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  17. हूँ छोड़ चला इक सृष्टि मैं,
    इक नवजीवन के स्वागत में,
    उस पार प्रिये तुम ही तुम थे,
    तुम ही हो जो इस पार रहे!

    बहुत सुंदर प्यार भरी प्रस्तुति. मेरे ब्लॉग से संलग्न होने के लिये शुक्रिया.

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  18. आप के शब्द चयन बहुत ही सुन्दर और साहित्यिक हैं..
    रौंदे मेड़ों की जब किनार
    धारा जीवन की बिखरी थी,
    तुम ही सबल, संवर्धक-से
    जुड़ते तिनकों के तार रहे.

    हृदयस्पर्शी कविता के लिए बधाइयाँ स्वीकार करें

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  19. हूँ छोड़ चला इक सृष्टि मैं,
    इक नवजीवन के स्वागत में,
    उस पार प्रिये तुम ही तुम थे,
    तुम ही हो जो इस पार रहे!very nice.

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  20. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

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  21. आभारी हूँ आपकी मेरे ब्लॉग पर आकर समर्थन हेतु|

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  22. तम था इतना, तुम क्या दिखते!
    नयना भी मेरी क्या करतीं!
    फिर भी कितनी उत्कंठा से,
    मेरे हर क्षण के सार रहे!

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  23. हूँ छोड़ चला इक सृष्टि मैं,
    इक नवजीवन के स्वागत में,
    उस पार प्रिये तुम ही तुम थे,
    तुम ही हो जो इस पार रहे!
    Bahut Khoob.

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  24. बहुत ही सुन्दर पोस्ट.....हिंदी बड़ी अच्छी है आपकी |

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  25. तम था इतना, तुम क्या दिखते!
    नयना भी मेरी क्या करतीं!
    फिर भी कितनी उत्कंठा से,
    मेरे हर क्षण के सार रहे!
    deep and touching thought
    nice lines

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  26. बेहतरीन रचना. आभार.

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  27. Beautiful writing...Felt as if lived a part of hindi literature...

    Keep penning more...:)

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  28. तम था इतना, तुम क्या दिखते!
    नयना भी मेरी क्या करतीं!
    फिर भी कितनी उत्कंठा से,
    मेरे हर क्षण के सार रहे!
    bahut sunder bhav
    rachana

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  29. हूँ छोड़ चला इक सृष्टि मैं,
    इक नवजीवन के स्वागत में,
    उस पार प्रिये तुम ही तुम थे,
    तुम ही हो जो इस पार रहे!....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  30. रौंदे मेड़ों की जब किनार
    धारा जीवन की बिखरी थी,
    तुम ही सबल, संवर्धक-से
    जुड़ते तिनकों के तार रहे....

    कुछ लोग होते हैं ऐसे जीवन में .. और उन्ही की संबल पे दुनिया जीती जाती है ...

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  31. बहुत ही सुन्दर भाव उतनी ही सुन्दर अभिव्यक्ति । 'इस पार प्रिये तुम हो मधु है उस पार न जाने क्या होगा' से अलग आपके लिये इस पार जो है वही उस पार भी है यह बात गीत को कुछ अलग बनाती है । हाँ "नयना भी मेरी क्या करती" ,अखर रहा है ।लिखने में ही भूल हुई है क्योंकि "नयना भी मेरे क्या करते"( जो होना चाहिये ) से सही तुक भी बनती है ।

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  32. प्रस्तुति अच्छी लगी । इस लिए अनुरोध है कि एक बार समय निकाल कर मेरे पोस्ट पर आने का कष्ट करें । धन्यवाद ।

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  33. http://urvija.parikalpnaa.com/2012/02/blog-post_08.html

    meri email id
    rasprabha@gmail.com

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  34. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति।
    सुंदर रचना।

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  35. बंधुवर मधुरेश जी
    सस्नेहाभिवादन !

    अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आ'कर …
    जीवन जब भीषण आंधी था
    तुम प्यार की बन बयार बहे
    था धुत नशा… पग डगमग जब
    संबल-से पथ पर हर बार रहे


    बहुत सुंदर रचना ! बधाई !

    हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  36. बहुत सुन्दर सार्थक और पावन प्रस्तुति.
    आभार.

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  37. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  38. वाह |||
    इस रचना के क्या कहने ??
    बहुत ही सुन्दर , बेमिसाल ,अनुपम भाव लिए प्यारी रचना है---******----

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