Wednesday, March 28, 2012

अधजल गगरी

जब तक थोड़ी भी अज्ञानता है, तब तक सम्पूर्णता नहीं है... और जब तक सम्पूर्णता नहीं है, तब तक ये मन तो अधजल गगरी ही है ना... कैसे समझाऊँ इसे... ? 

काहे छलको रे गगरी अधजल,
समझो सुधि अपनी तेज चपल?
जब जानते हो जीवन है जल,
करना मुट्ठी में प्रयास विफल.

गिरना, लेकिन मत होना विकल
अंतर नित-नित तुम करना प्रबल,
जीता उसने निज जीवन को
सीखा जिसने है जाना संभल.

उर में अब प्रेम अगाध लो भर
धर लो मन में ये विचार विमल
चलना पथ पर तुम धीरज धर
छलके न कभी गगरी अधजल.

Picture Courtesy:http://www.paintingsilove.com/image/show/216073/indian-village-woman 

Thursday, March 22, 2012

मधुशाला तुम पे लिख डालूँ





इक सुन्दर, श्रृंगार की कविता
दिल करता तुम पे लिख डालूँ.
कुछ शब्द संजोऊँ मीठे से,
मधुशाला तुम पे लिख डालूँ.

पलकें जब उठती-गिरती हैं
खाली प्याला भर जाता है,
तुम्हे देख-देख ही नयनो में
पुरज़ोर नशा चढ़ जाता है.

किन शब्दों से मुख के रज का
करूँ वर्णन मैं इस नीरज का!
मन रजनि पा तुम सा मयंक,
बस तृप्त-तृप्त हो जाता है.

मुस्कान मृदुल मनमोहक जब
बनकर कुसुम मुख पर खिलती,
जी करता उनको चुन-चुन कर
इक माला उनकी गढ़ डालूँ.

कुछ शब्द संजोऊँ मीठे से,
मधुशाला तुम पे लिख डालूँ.

Picture Courtesy:Priyadarshi Ranjan

Dedicated to Abhishek Bhaiya and Bhabhi :) Wedding gift :)

P S : 'बच्चन' की 'मधुशाला' से इन पंक्तियों का न तो कोई सरोकार है, न ही तुलना की जा सकती है.... पाठकगण से अनुरोध है की इसे simply  एक श्रृंगार की कविता के तौर पर पढ़ें. आभार!

Entropy-ism 3




जो क्षण आया है, जाएगा,
क्या सोचो तुम रह जाएगा
इक तुम होगे, अतीत होगा,
बाकी सब कुछ बह जाएगा। 

यह जान प्रिये अनजान बनो,
अब छोड़ो हठ, नादान बनो,
हाथों में बस इक प्याला हो,
मन में हो मधु, मधुशाला हो।  
 

मधुशाला वो जो रस बरसे,
इक सुन्दर सा स्वरूप निखरे,
हों पुष्प जहाँ पल्लवित सदा,
नेह, प्रेम के भाव बिखरे.

मधुशाला हो अतीत को भूलना,
औ' भविष्य की चिंता न करना,
ये हो अविरत उत्सव का विधान,
जो है वर्तमान, उसी का गुणगान.


Picture Courtesy:Priyadarshi Ranjan

Thursday, March 15, 2012

इन उजालों से गुज़ारिश है...


काश कि इस दिल में
इक दरवाज़ा होता,
जिसे खोल देता मैं
और जी भर के भर लेता
इन उजालों को.

काश कि ख्वाबों की भी
कोई हार्ड डिस्क होती,
और स्टोर कर लेता मैं
इन लम्हों के
नायाब ख़यालों को.

काश कि इन पलों को
थमने की सहूलियत होती,
और अंतर के संगीत पर
थिरकता ये सुरमयी मन
ले जाता पराकाष्ठा पर
उमंग भरे तालों को.

Picture Courtesy: http://www.416-florist.com/flowerblog/holiday-flowers/white-flower-arrangements.html

Friday, March 9, 2012

अभिलाषा




मैं तो बिखरे तिनकों-सा था,
तुमने मुझको ऐसा ढाला,
खग-सा उड़ता मैं चिदाकाश में
संग-संग उड़ती ये मधुशाला.

तुम सिन्धु सुधा की निर्झर
मैं था प्यासा, पीनेवाला
तुमसे ही कुछ बूँदें पाकर
तृप्त हुई मेरी मधुशाला.

इन साँसों में अब बसना तुम,
उर में हो तुमसे ही उजाला,
स्नेह-मदिरा अविरत ढरती हो,
अक्षुण्ण रहे ये मधुशाला.

Picture Courtesy: Vimal Kishore

Monday, March 5, 2012

सूट नहीं करता


कुछ ख्यालों को पर्दों में ही रखा करो,
सब बेनकाब ही हों, ये सूट नहीं करता.

तमाम बातें यूँ दिल पे न लिया करो,
सब लाजवाब ही हों, ये सूट नहीं करता.

कभी चुपचाप खुद से भी कुछ कहा करो,
सब शोर-ए-आब ही हो, ये सूट नहीं करता.

हर हुस्न है दीद के काबिल यहाँ मगर
सब बेहिजाब ही हों, ये सूट नहीं करता.

हर जाम में होता है इक नशा 'मधुर'
सब में शराब ही हो, ये सूट नहीं करता.

Picture Courtesy: http://url123.info/3174ebe8