तुम प्यार की बन बयार बहे,
था धुत नशा, पग डगमग जब,
संबल-से पथ पर हर बार रहे.
रौंदे मेड़ों की जब किनार
धारा जीवन की बिखरी थी,
तुम ही सबल, संवर्धक-से
जुड़ते तिनकों के तार रहे.
तम था इतना, तुम क्या दिखते!
नयना भी मेरे क्या करते !
फिर भी कितनी उत्कंठा से,मेरे हर क्षण के सार रहे!
था छोड़ चला इक सृष्टि मैं,
जब नवजीवन के स्वागत में,
उस पार प्रिये तुम ही तुम थे,
तुम ही हो जो इस पार रहे!
बेहद सुंदर, पावन कामना है , ऐसा ही हो ,
ReplyDeleteसकारात्मक विचार लिए पंक्तियाँ ..
जो जीवन सार बन कर रहा , उससे बढ़कर कौन ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteतम था इतना, तुम क्या दिखते!
ReplyDeleteनयना भी मेरी क्या करतीं!
फिर भी कितनी उत्कंठा से,
मेरे हर क्षण के सार रहे!
बिल्कुल सही कहा है ..आपने इन पंक्तियों में ..आभार
बहुत सुन्दर भाव्।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteप्यार में ही तो है जीवन का सार..
//तम था इतना, तुम क्या दिखते!
ReplyDeleteनयना भी मेरी क्या करतीं!
फिर भी कितनी उत्कंठा से,
मेरे हर क्षण के सार रहे!
waah...
bahut sundar..
वाह ...बहुत ही अनुपम भाव लिये ..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत भाव संजोये हैं ..
ReplyDeleteतम था इतना, तुम क्या दिखते!
ReplyDeleteनयना भी मेरी क्या करतीं!
फिर भी कितनी उत्कंठा से,
मेरे हर क्षण के सार रहे!
बहुत खूब सर!
सादर
रौंदे मेड़ों की जब किनार
ReplyDeleteधारा जीवन की बिखरी थी,
तुम ही सबल, संवर्धक-से
जुड़ते तिनकों के तार रहे.
सकारात्मक विचार की सुंदर कविता ....
शब्दों पर पकड़ अच्छी है आपकी ....
अगर 'क्षणिकाएं' लिखते हों तो भेज सकते हैं 'सरस्वती-सुमन' पत्रिका के लिए ...
ReplyDeleteजिसके अतिथि संपादन का कार्य भार इन दिनों मुझ पर है ....
संक्षिप्त परिचय और चित्र के साथ ....
बेहद सुंदर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteतम था इतना, तुम क्या दिखते!
ReplyDeleteनयना भी मेरी क्या करतीं!
फिर भी कितनी उत्कंठा से,
मेरे हर क्षण के सार रहे!
आत्म - विश्वास और हौसला दिखलाती रचना.... :) शुभकामनायें.... :)
बहुत खूबसूरत भाव......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है ..अच्छी लगी..
ReplyDeleteरौंदे मेड़ों की जब किनार
ReplyDeleteधारा जीवन की बिखरी थी,
तुम ही सबल, संवर्धक-से
जुड़ते तिनकों के तार रहे.
सुंदर शब्दों में कृतज्ञता अभिव्यक्त हुई है इस रचना में।
हूँ छोड़ चला इक सृष्टि मैं,
ReplyDeleteइक नवजीवन के स्वागत में,
उस पार प्रिये तुम ही तुम थे,
तुम ही हो जो इस पार रहे!
बहुत सुंदर प्यार भरी प्रस्तुति. मेरे ब्लॉग से संलग्न होने के लिये शुक्रिया.
आप के शब्द चयन बहुत ही सुन्दर और साहित्यिक हैं..
ReplyDeleteरौंदे मेड़ों की जब किनार
धारा जीवन की बिखरी थी,
तुम ही सबल, संवर्धक-से
जुड़ते तिनकों के तार रहे.
हृदयस्पर्शी कविता के लिए बधाइयाँ स्वीकार करें
हूँ छोड़ चला इक सृष्टि मैं,
ReplyDeleteइक नवजीवन के स्वागत में,
उस पार प्रिये तुम ही तुम थे,
तुम ही हो जो इस पार रहे!very nice.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआभारी हूँ आपकी मेरे ब्लॉग पर आकर समर्थन हेतु|
ReplyDeleteसुंदर आत्म मंथन.
ReplyDeleteतम था इतना, तुम क्या दिखते!
ReplyDeleteनयना भी मेरी क्या करतीं!
फिर भी कितनी उत्कंठा से,
मेरे हर क्षण के सार रहे!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
हूँ छोड़ चला इक सृष्टि मैं,
ReplyDeleteइक नवजीवन के स्वागत में,
उस पार प्रिये तुम ही तुम थे,
तुम ही हो जो इस पार रहे!
Bahut Khoob.
बहुत ही सुन्दर पोस्ट.....हिंदी बड़ी अच्छी है आपकी |
ReplyDeleteतम था इतना, तुम क्या दिखते!
ReplyDeleteनयना भी मेरी क्या करतीं!
फिर भी कितनी उत्कंठा से,
मेरे हर क्षण के सार रहे!
deep and touching thought
nice lines
बेहतरीन रचना. आभार.
ReplyDeleteBeautiful writing...Felt as if lived a part of hindi literature...
ReplyDeleteKeep penning more...:)
तम था इतना, तुम क्या दिखते!
ReplyDeleteनयना भी मेरी क्या करतीं!
फिर भी कितनी उत्कंठा से,
मेरे हर क्षण के सार रहे!
bahut sunder bhav
rachana
हूँ छोड़ चला इक सृष्टि मैं,
ReplyDeleteइक नवजीवन के स्वागत में,
उस पार प्रिये तुम ही तुम थे,
तुम ही हो जो इस पार रहे!....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
रौंदे मेड़ों की जब किनार
ReplyDeleteधारा जीवन की बिखरी थी,
तुम ही सबल, संवर्धक-से
जुड़ते तिनकों के तार रहे....
कुछ लोग होते हैं ऐसे जीवन में .. और उन्ही की संबल पे दुनिया जीती जाती है ...
बहुत ही सुन्दर भाव उतनी ही सुन्दर अभिव्यक्ति । 'इस पार प्रिये तुम हो मधु है उस पार न जाने क्या होगा' से अलग आपके लिये इस पार जो है वही उस पार भी है यह बात गीत को कुछ अलग बनाती है । हाँ "नयना भी मेरी क्या करती" ,अखर रहा है ।लिखने में ही भूल हुई है क्योंकि "नयना भी मेरे क्या करते"( जो होना चाहिये ) से सही तुक भी बनती है ।
ReplyDeletebahuch sunder bhaav. prem pagi abhivyakti.
ReplyDeleteप्रस्तुति अच्छी लगी । इस लिए अनुरोध है कि एक बार समय निकाल कर मेरे पोस्ट पर आने का कष्ट करें । धन्यवाद ।
ReplyDeletebehad sundar
ReplyDeletehttp://urvija.parikalpnaa.com/2012/02/blog-post_08.html
ReplyDeletemeri email id
rasprabha@gmail.com
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDelete♥
बंधुवर मधुरेश जी
सस्नेहाभिवादन !
अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आ'कर …
जीवन जब भीषण आंधी था
तुम प्यार की बन बयार बहे
था धुत नशा… पग डगमग जब
संबल-से पथ पर हर बार रहे
बहुत सुंदर रचना ! बधाई !
हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर सार्थक और पावन प्रस्तुति.
ReplyDeleteआभार.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteवाह |||
ReplyDeleteइस रचना के क्या कहने ??
बहुत ही सुन्दर , बेमिसाल ,अनुपम भाव लिए प्यारी रचना है---******----
रचना अच्छी लगी।
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