विवाद, विषाद, उन्मत्त उन्माद,
अंतर था तम का अविरत प्रामाद.
न कोई रक्ति, न कोई वाद.
अंतरमन ने पूछा मुझसे,
अनुनय किससे, विमर्श कहाँ?इस विविध राग के गान में,
उत्सर्ग कहाँ, उत्कर्ष कहाँ?
अब छोड़-छाड़ ये सोच विचार,
मन उड़ जा अब, कर जा तू पार,
चल दूर कहीं हैं नीरव नाद,
आनंद अविरत, प्रशांति अपार.
Such a chaos life has been!
O! the worldly desires,
the cause of suffering,
you'll fade away now.
Ah! I feel the tranquility,and peace from within,
without any attachment
without any reasoning!
No dedication or devotion
or any spiritual elevation
is possible in the chaos.
O! my inner conscience,
take me away from here
to a far distant place,
in the sound of silence,
where bliss flows incessantly!
उन्मत्त उन्माद = severe madness/ restlessness
रक्ति = attachment
अनुनय= intercession, request
विमर्श= to take or consider other's opinion
उत्सर्ग= dedication
उत्कर्ष= progress, elevation
नीरव नाद = the sound of silence
अविरत = incessant
Picture Courtesy: http://laist.com/2009/02/13/extra_extra_465.php
बहुत ही गहरे भाव
ReplyDeleteकविता बहुत गहरे चिंतन की उपज लगती है... बधाई ! वर्तनी की त्रुटियों को ठीक करलें तो सोने में सुहागा..
ReplyDeletevery nice poem..........
ReplyDeletethanks for visiting my blog and droping kind comments.
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुन्दर हिंदी में शानदार कविता|
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता . बधाई
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस कि हार्दिक सुभकामनाएँ.
बहुत ही गहन अभिव्यक्ति.... बहुत खूब
ReplyDeletebahut behtareeen... dil se nikle bhaw... aur bahut khubsurat shabdo ka istemall:)
ReplyDeleteआप सभी का बहुत आभार!
ReplyDeleteमुकेश जी, शिवा जी, विद्या जी, अवन्ती जी, बलौग पर आपका हार्दिक स्वागत है!
Very Well Worded....
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हिंदी के क्लिष्ट शब्दों का सुंदर चयन, भाव कहीं भी बिखरे नहीं,सराहनीय व श्रेष्ठ रचना...
ReplyDeleteअंतरमन ने पूछा मुझसे, अनुनय किससे, विमर्श कहाँ?
ReplyDeleteइस विविध राग के गान में,
उत्सर्ग कहाँ, उत्कर्ष कहाँ?
कविता बेहद खूबसूरत है...गहरे समंदर से भाव...पल बदलते लहरों की तरह...ये पंक्तियाँ किसी कॉपी में सहेज देने जितनी अनमोल हैं।
Chaitanya ji, Shanti ji, Arun ji, Puja ji, abhaari hun... bahut protsaahan mila! dhanyavaad!
ReplyDeletewaah!aap ne to kmaal kiya....kitni gahre bhaav wali rachna ki rachna kar daali,waah! bahut hi umda...bdhai ho aap ko
ReplyDeleteआप का आभार जो आप ने गौ वंश रक्षा मंच पर अपनी अमूल्य टिप्पणी दी ,लेकिन सिर्फ टिप्पणी ही नहीं ,आप इस गम्भीर विषय पर अपने विचार और सुझाव के साथ अपनी कोई रचना/लेख भी इस विषय पर दें,जो सादर इस मंच पर रखी जाये , आप की रचना की प्रतीक्षा रहेगी,अपनी रचनाये कृपया यहाँ भेजे = raadheji@gmail.com
ReplyDeleteManobhavon ki sarthak abhivykati..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव पूर्ण रचना
ReplyDeleteअति उत्तम अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसराहनीय......
क्या यही गणतंत्र है
सुन्दर शब्द संयोजन, सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा.
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/02/blog-post_02.html
ReplyDelete//अंतरमन ने पूछा मुझसे,
ReplyDeleteअनुनय किससे, विमर्श कहाँ?
इस विविध राग के गान में,
उत्सर्ग कहाँ, उत्कर्ष कहाँ?
waah.. bahut sundar :)
हार्दिक बधाइयाँ..आपको पढ़कर.बहुत ख़ुशी हुई..
ReplyDeleteअंतरमन ने पूछा मुझसे,
ReplyDeleteअनुनय किससे, विमर्श कहाँ?
इस विविध राग के गान में,
उत्सर्ग कहाँ, उत्कर्ष कहाँ?
अंतर्मन ने गहन प्रश्न किया है और आपकी कविता ने समाधान भी खूब निकाला है!
blissful expression!
It has been nice to visit your blog!!!
Best wishes!!!