Saturday, January 7, 2012

कई बार ऐसा होता है!


कई बार,
मैं सोचता कुछ और हूँ!
कहता कुछ और ही हूँ!
और बताना
कुछ और ही चाहता हूँ!
लोग समझ नहीं पाते हैं!
बस विस्मित रह जाते हैं!
कई बार ऐसा होता है!

लेकिन ज़रूर कोई जादू है,
जो जान जाती हो तुम,
हमेशा ही
कि मैं क्या सोचता हूँ,
क्या ही कहता हूँ!
और क्या है वो
जो बताना चाहता हूँ!
आखिर ये कैसे होता है!
कई बार ऐसा होता है!

कई बार दो चीज़ें
जुडी हुई तो दिख जाती हैं,
मगर धागे नहीं दिखते!
वो महीन धागे,
जो जोड़ते हैं उन्हें!
फिर कैसे दिख पाता है तुम्हे
वो जो देखना होता है !
कई बार ऐसा होता है!

2 comments:

  1. बस विस्मित होते रहिये:)

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    1. धन्यवाद अनुपमा दीदी! :)

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