Friday, October 26, 2012

मिथ्यावरण


यह पूनम भी अमानिशा सी
अँधियारा लिपटाती जाती.
औ' बैरन-सी भयी बयार भी
कुटिल शीत कड़काती जाती.

उजियारा बस कहने को है,
अंतर तम का घोर कहर है.
बाहर के चकमक में उर ये
अंतस लौ झुठलाती जाती.

तज दे झूठी राग चमक की,
तज दे अब ना और बहक री,
चल रे अब तू भीतर चल री,
क्यूँ खुद को भरमाती जाती!


O my conscience,
hold me tight.
I'm swaying away,
escape the plight.
For it's so fake-
this outside light.
'n I'm ruining away
my so rich life.
I have to go back,
back- deep inside.
O my conscience,
hold me tight. 



Picture Courtesy: http://nmsmith.deviantart.com/art/Inner-Light-132644163

Sunday, October 14, 2012

कुरुक्षेत्र


कल की बात है 
कुरुक्षेत्र -
रक्त-रंजित था
आज फिर से
रक्त-रंजित है.
वो रक्त
जिसका स्राव भी ततक्षण
वहशी पी जाते हैं.
मानवता अब प्रतिदिन
बे-आबरू होती है
और अब कृष्ण भी कोई नहीं है.
हो भी क्यों?
कृष्ण तो उनका था ही नहीं
कभी भी नहीं
क्योंकि आज का कृष्ण
देखता है
कौन आम है, कौन खास है
उसका एकाधिकार तो अब
खापों के पास है.

Inspired by: Saru Singhal's why-should-i-be-ashamed

Picture Courtesy: http://www.dipity.com/tickr/Flickr_epistemology/

Wednesday, October 3, 2012

ओ अंधियारे के चाँद



ओ अंधियारे के चाँद तेरी
चमक फीकी पड़ती जाए...
काले से पखवाड़े में क्यों
काला तू पड़ता जाए ?.. 

कोई देखे, कोई ना देखे
अब किसे कौन समझाए...
इस ओर से काला होकर भी
उस ओर तू चमका जाए..

तू है धरा के पास-पास,
चमके, कभी तू धुंधलाए...
क्यों पूनम की चमक तुझे
इक दिन से ज़्यादा न भाए..

देख तो सूरज चमके कैसे
हर दिन एक सुभाए...
तुझे धरा से दूर चमकना
क्यों फिर रास न आए?

अमानिशा के बाद तुझे
फिर से मेरी याद सताए...
मेरी अंधियारी रातों को
फिर से तू चमकाए!!