टैगोर की लिखी इन पंक्तियों को हिंदी के शब्द दे पाना मुश्किल है... फिर भी एक प्रयास अनुवाद का
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ये चिंता क्यों सखी?
ये वेदना क्यों सखी?
ये जो तुम प्रेम के रट
दिन-रात लगाती हो,
क्या उसमे भी अपनी
पीड़ाएँ ही छुपाती हो?
इन नम आँखों से जो
प्रेम की धारा बह रही है,
बताओ उसमे कौन-सा
आनंद है जो पाती हो?
देखो! मेरे नयन से तो
सब प्यारा ही दिखता है!
बिलकुल नया-नया औ'
न्यारा ही दिखता है!
प्यारा नीला आसमान,
और प्यारी ये हरियाली,
रात की चादर ओढ़े
चाँद की मुस्कान निराली!
ये फूल खिलखिलाते से,
सदा हँसते और गाते से,
न आंसू हैं आँखों में,
न कोई विषाद है,
न तड़प है कोई
और न कोई आस है.
शाखों से टूटते फूल भी
गिरते हँसते-मुस्कुराते,
ये तारे भी हँसते हुए ही
निशा में घुलते जाते.
और घुलते-घुलते आता है
फिर से एक नया सवेरा,
ख़ुद को ख़ुश ही पाता है,
इन्हें देख कर मन मेरा.
सखी आओ पास मेरे,
अपनी ये ख़ुशी बाँट लूँ
ख़ुशी के गीत लिखूं,
ख़ुशी ही गुनगुनाऊं.
अपनी ख़ुशी से तुम्हारी
वेदना कम कर पाऊं,
आओ पास सखी,
तुम्हारे ग़म मिटा जाऊं.
प्रतिदिन की वेदना छोड़ो,
आओ एक दिन ख़ुशी मनाएं.
एक दिन सिर्फ ख़ुशी में झूमे,
और ख़ुशी में नाचे-गाएं.
ये चिंता क्यों सखी?
ये वेदना क्यों सखी?
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Thanks to Tripta for sending me such a lovely song!
Dedicated to Madhu Ma'am (Dr. Madhubala Joshi) from whom I learnt about Tagore in such details last summer.
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ये चिंता क्यों सखी?
ये वेदना क्यों सखी?
ये जो तुम प्रेम के रट
दिन-रात लगाती हो,
क्या उसमे भी अपनी
पीड़ाएँ ही छुपाती हो?
इन नम आँखों से जो
प्रेम की धारा बह रही है,
बताओ उसमे कौन-सा
आनंद है जो पाती हो?
देखो! मेरे नयन से तो
सब प्यारा ही दिखता है!
बिलकुल नया-नया औ'
न्यारा ही दिखता है!
प्यारा नीला आसमान,
और प्यारी ये हरियाली,
रात की चादर ओढ़े
चाँद की मुस्कान निराली!
ये फूल खिलखिलाते से,
सदा हँसते और गाते से,
न आंसू हैं आँखों में,
न कोई विषाद है,
न तड़प है कोई
और न कोई आस है.
शाखों से टूटते फूल भी
गिरते हँसते-मुस्कुराते,
ये तारे भी हँसते हुए ही
निशा में घुलते जाते.
और घुलते-घुलते आता है
फिर से एक नया सवेरा,
ख़ुद को ख़ुश ही पाता है,
इन्हें देख कर मन मेरा.
सखी आओ पास मेरे,
अपनी ये ख़ुशी बाँट लूँ
ख़ुशी के गीत लिखूं,
ख़ुशी ही गुनगुनाऊं.
अपनी ख़ुशी से तुम्हारी
वेदना कम कर पाऊं,
आओ पास सखी,
तुम्हारे ग़म मिटा जाऊं.
प्रतिदिन की वेदना छोड़ो,
आओ एक दिन ख़ुशी मनाएं.
एक दिन सिर्फ ख़ुशी में झूमे,
और ख़ुशी में नाचे-गाएं.
ये चिंता क्यों सखी?
ये वेदना क्यों सखी?
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Thanks to Tripta for sending me such a lovely song!
Dedicated to Madhu Ma'am (Dr. Madhubala Joshi) from whom I learnt about Tagore in such details last summer.
सुन्दर प्रयास के लिए बधाई.. टैगोर को नमन..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति....
ReplyDeleteYou're welcome. And thank you, again.
ReplyDelete(Tripta)
बहुत बढ़िया. .....
ReplyDeleteबेहद सुन्दर कविता.....
अनुवाद अच्छा ही होगा तभी रचना में सुंदरता बरकरार है.....
महान कवि की भावना वैसे भी समझ पाना एक अंतहीन पथ का वरण करना है , आपने सार्थक प्रयास किया है जो प्रशंसनीय है ,साहित्य सुन्दर व स्वस्थ मानस की प्रवृत्ति है कोई कोई करता है , शुभकामनायें ...../
ReplyDeleteइतनी मूल्यवान टिपण्णी एवं प्रोत्साहन के लिए सहृदय धन्यवाद!
Deleteब्लॉग पर आपका सहर्ष स्वागत है.
सादर
बहुत सुंदर अनुवाद .....
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteसादर
सार्थक ....
ReplyDelete.......खूबसूरत ख्यालो से सजी रचना...बधाई!!
ReplyDeletesarthak anuwaad !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कविता,सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
सुभानाल्लाह......गुरुवर की इतनी सुन्दर कविता अछूती रह जाती अगर आप इसके इतना अच्छा अनुवाद न करते ........बहुत शुक्रिया ।
ReplyDeleteसार्थक प्रयास ...बधाई
ReplyDeleteसराहनीय प्रयास ...बहुत बढ़िया अनुवाद .....बहुत प्रबलता है भावों में ....
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनायें ...
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
ReplyDeleteचर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्टस पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
अतुल जी, चर्चामंच में रचना शामिल करने लिए आभार.
Deleteसादर
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रयास... शुभकामनाएं....
ReplyDeleteसुंदर!!
ReplyDeleteबड़ी सुंदर अनूदित रचना ....
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति..
ReplyDeleteचर्चामंच के ज़रिये आना हुआ आपके ब्लॉग पर ... आपके रचना बहुत पसंद आई ... शुभकामनाएं
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर प्रयास भावों को ज्यों का त्यों पेश करने के लिये.
ReplyDeleteशुभकामनायें.
Mast bhai mast!!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteवाह ...
ReplyDeleteअनुवाद बहुत ही बढ़िया किया आपने ....
ये जो तुम प्रेम के रट
दिन-रात लगाती हो,
क्या उसमे भी अपनी
पीड़ाएँ ही छुपाती हो?
इन नम आँखों से जो
प्रेम की धारा बह रही है,
बताओ उसमे कौन-सा
आनंद है जो पाती हो?
जरा भी नहीं लगता की ये अनुवाद है ....
टैगोर जी को पढना सुखकर लगा ....!!
bahut sundar
ReplyDeleteप्रतिदिन की वेदना छोड़ो,
ReplyDeleteआओ एक दिन ख़ुशी मनाएं.ahut badhiya anuvad.....
अनुवाद के जरिए इस खूबसूरत भावपूर्ण कविता से रू-ब-रू कराने के लिए आभार!
ReplyDeleteवाह सुन्दर भावपूर्ण रचना के साथ न्याय किया आपने.
ReplyDeleteBahut sundar anuwad... Badhai ! Main use Facebook par link kr rhi hu.
ReplyDeleteसुन्दर!...शब्द सहज उतरते हैं आपके काव्यमें...सुन्दर अनुवाद!
ReplyDeleteसुंदर अनुवाद ! सफल प्रयास !
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