Friday, July 29, 2011

Village on the go


 
पंख पंखुडियां,
पतली पगडंडियाँ,
बाग़- बागीचे,
खेत खलिहान.


ऊपर नीरद,
नीचे नहरें,
पीली सरसों,
सुनहरी धान.


बरसे बरखा,
रोमिल रिमझिम,
सुमधुर सावन
का आदान.


बाह्य धरा तो
है संतृप्त-सी,
फिर भी आतुर
ये अन्तःकरण


आशाओं की
घिरी घटा में,
मुग्ध-मधुर हो
मचले ये मन.


Dedicated to: Amit Bhaiya, Swarnlata Di, Supratim da, Garima Di and Shikha Di 

Sunday, July 3, 2011

अहा ज़िन्दगी


लम्हों-लम्हों में समाती सी ज़िंदगी,
बूँद-बूँद में सिमटती सी ज़िंदगी.

ख्वाहिशों के ऊंचे आसमान में
उड़ान को मचलती सी ज़िंदगी.

इक आशियां जहाँ हमसुखन हों सभी
उसे तलाशती सी, शाहीं सी ज़िंदगी.

इक नग़मा जो रूह में कना-अत भर दे,
उसे गाती सी, गुनगुनाती सी ज़िंदगी.

सख्त-कोशी में तलख है, शहद भी,
जो है जिस ओर, उसे अपनाती सी ज़िन्दगी.


Such a short life it is!
And each moment is so adorable!
It yearns to fly high in the sky of dreams,
It yearns to rest n chat with close friends,
It yearns to sing a song that satiates the soul,
But it keeps accepting whatever comes in the way!