Saturday, January 29, 2011

वसंत




झड़ते-बिखरते,
सूखे पीले पत्ते.
नव-आवरण को
वृक्ष तरसते.
सब्र करो, उग आयेंगे
फिर से हरे पत्ते!

चिड़ियों की चहक से
चहकती-सी दुनिया.
फूलों की खुशबू से
महकती-सी दुनिया.
कई छोड़ चले, कई आएंगे
फिर से चमकते दमकते!
 
क्यूँ हो मन में
विरह का क्षोभ?
क्यूँ पाले कोई
मिलन का लोभ?
कहती नियति- ढल जायेंगे
यूँही मिलते-बिछड़ते!
Picture Courstey: Mark Schellhase http://commons.wikimedia.org/wiki/User:Mschel

Dedicated to my close-to-heart friends Saurabh, Srishti and Vishal-  you make the spring of my life...

Saturday, January 1, 2011

गीत नया गुनगुना ऐ मन



गीत नया गुनगुना ऐ मन.
दिल के तार बजे छन-छन.
तोड़ के सारे कुपित बंधन,
उन्मुक्त छिड़े सौरभ मन-उपवन!

देखो गाता मंद-समीर यह,
देखो झूम रहा है कण-कण.
प्रेम-माधुर्य को कर आलिंगन,
वर्ष है आया यह नव-नूतन.

कोई दिल की बात छुपे ना,
शब्द पिरो ले जैसे दर्पण.
और झूमे इनके संगीत में,
स्नेह-विभोर अपना यह जीवन.


Dedidated to Swarn Di, who has always been so inspiring for me!