Thursday, December 27, 2012

मानसिकता में बदलाव



नियमों को बदलने से क्या होगा,
जब नियत ही न बदल पाई हो?
बात आसमां में उड़ने की क्या हो,
जब ज़मीं पर ही न संभल पाई हो!

बड़ी बड़ी बातों में नहीं रखा है, 
जवाब हमारी आजादी का कहीं। 
इज्ज़त-ओ-कद्र के दो लफ्ज़ ही पर 
जब ज़ुबां हमारी न अमल कर पायी हो!

बात न क़ानून की रह गयी है कहीं,
और न किसी इन्साफ में ही दम है। 
गली-नुक्कड़ की गन्दगी पे क्या बोलें,
घर-आँगन में ये कचरा क्या कम है?

ज़रूरत है मानसिकता में बदलाव की,
ज़रूरत है कुरीतियों पे पथराव की।
ज़रूरत है कि इस ज़रूरत को समझे हम,
और घर से ही इस कमी की भरपाई हो।

Picture Courtesy: Priyadarshi Ranjan

Monday, December 24, 2012

विनती



यह दीन दशा अब देख देश की,
रोती  प्याला, रोती हाला।
चहु ओर व्यथा है, औ' विषाद है,
थर-थर काँपे मन-साक़ी बाला।

कैसी मादकता छा गयी समाज में!
किसने ढारी यह कलुषित हाला!
निःशब्द खड़ी, नियति पे रोती,
बस शोक मनाती मधुशाला।

कुछ पुष्प ईश-अर्पण के तुम,
श्रद्धा से परे हटा देना,
विनती उस बाला की करना,
बनी रहे उसकी मधुशाला।


Dedicated to that brave girl who is still struggling for life in Safdarjung Hospital. 
May God give her immense strength to recover soon. Amen.