Thursday, March 28, 2013

कौड़ियों के दाम भी न बिका


पैसे की तंगी ने
मजबूर किया मुझे
खुद को बेच डालने को।
तो निकल पड़ा मैं भी
इस बाज़ार में
अपना मोल लगाने को।
खुद की खूबियाँ गिनी,
खुद की खामियां गिनी,
भई
नेकी है, ईमान है,
उसूलों वाला इंसान है,
सोचा,
दाम तो  अच्छा ही लगेगा,
मगर बाज़ार की डिमांड
तो कुछ और ही थी,
मक्कारी, जालसाजी, दिखावा
येही गुण बिक रहे थे,
दिन भर कड़ी धूप में
बोली लगाता रहा अपनी,
और शाम को मायूस होकर
घर आ गया मैं,
अफ़सोस,
कि कौड़ियों के दाम भी
न बिक पाया मैं!


Picture Courtesy: http://sangisathi.blogspot.com/2011_11_01_archive.html

Thursday, March 21, 2013

मकां आसमां है तेरा


ज़मीं पर है तू मगर मकां आसमां है तेरा,
इन पैरों को पर बनने की ख्वाहिश तो दे ज़रा।

ये हकीक़त जो है, सपनों से सजा ही तो है,
नींद आँखों से हटा, सपनों का दीदार तो करा।

रुख़ हवाओं का भी बदलता है इक दौर के बाद,
भरके दम उनको इस सीने से गुज़रने तो दे ज़रा।

कोई रोके, कोई टोके, क्या ही परवाह हो किसी की,
तुझे जिसकी भी हो परवाह, कदम उस ओर तू बढ़ा।

कहीं थकना, कहीं गिरना, फिर संभलना है मधुर,
राह की राग है अनोखी, बस हो मन सुर से भरा।


Picture Courtesy: http://www.guernik.com/en/ilustracion