एक ग़रीब दंपत्ति थी,
सीमित उनकी संपत्ति थी.
कुछ कपड़े, इक झोपड़ था,
थोड़े अनाज, थोड़ा जड़ था.
एक जाड़े की बात थी,
होने चली अब रात थी.
रात्रि-भोज की तैयारी थी,
पत्नी उसमे व्यस्त भारी थी.
सब्जी बनकर तैयार थी,
बनानी बस रोटी चार थी.
परथन में आटा कम था,
औ' चूल्हे पे तवा गरम था.
बेलन की आपाधापी में
रोटी पहली कुछ जल-सी गयी.
अफ़सोस किया उसने इसपर
लेकिन आगे संभल सी गयी.
पहले तो ईश-भोग लगायी,
फिर खाने की थाल बिछायी.
परोसा पत्नी ने खाना,
था कीमती हर इक दाना.
धीरे से फिर पत्नी ने,
जली रोटी खुद ही रख ली,
अच्छी रोटी की थाल बढा,
पति के हाथों में धर दी.
पति इससे अनजान न था,
पर पत्नी को अनुमान न था.
'सुन री, ज़रा अन्दर तो जा,
पानी भरा गिलास तो ला'.
पत्नी ये सुनते ही झट से
पानी लाने अन्दर को गयी,
पति ने इतने में फट से
रोटी की अदल-बदल कर ली.
फिर से बैठे दोनों संग में,
रंगे हुए समर्पण-रंग में.
इक-दूजे को देखते रहतें,
कभी खाते, कभी बातें करतें.
पत्नी को सहसा ध्यान आया,
अदला-बदली का ज्ञान आया,
'अजी, रोटी तुमने क्यूँ बदली,
क्यूँ जली हुई खुद ही खा ली?'
'क्यूँ री! बनती होशियार बड़ी,
क्या तुझको मुझसे प्यार नहीं!
जो कुछ ख़राब, तू खुद लेती,
जो अच्छा सो मुझको देती!'
'तू तो मेरी अर्धांगन है,
तेरा तन भी मेरा तन है,
जो कुछ हो बांटे-खायेंगे,
ख़ुशी से झूमे, गायेंगे.'
दुःख में भी जो समर्पण हो
तो कहाँ जीवन खलता है!
छोटी-छोटी कमियों में भी
प्रगाढ़ प्रेम पलता है!
Picture Courtesy: http://indianculture-blog.blogspot.com/
bahut sunder prastuti hai. sach me chhoti chhoti baton me pariwar ki khushiyan aur pragad prem chhupa hai.
ReplyDeleteआप को सपरिवार नव वर्ष 2012 की ढेरों शुभकामनाएं.
Anamikaji, Saraahna ke liye dhanyavaad! aapko bhi naye varsh ki shubhkaamanyen!!
ReplyDeleteBahut achi kavita hai...
ReplyDeleteNav warsh ki hardik shubhkamnaye.
kamna karta hoon ki 2012 main isi tarah achi- achi kavitayen likhte rahe.
Thanks dear!! likhunga bilkul! :)
ReplyDeleteAur tum bhi!!
awsome .... sumit yaar tum aapni kavita ki na ek kitablikhna suru kar do ...
ReplyDeleteयही छोटी-छोटी बातें ही सुख का आधार हैं.बहुत ही बेहतरीन.
ReplyDeleteएहसासों का समंदर है आपकी रचनाएँ.अच्छा लगा यहाँ आना.
ReplyDeleteदुःख में भी जो समर्पण हो
ReplyDeleteतो कहाँ जीवन खलता है!
छोटी-छोटी कमियों में भी
प्रगाढ़ प्रेम पलता है!
.. बहुत खूब!..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...सच है छोटी छोटी बातें ही प्रेम का गहरा सागर छुपाये रहती हैं..शुभकामनायें...
Arun ji, Shikha ji aur Kailash ji,
ReplyDeleteaap sabhi ke sneh ka abhaari hun!
bahut abhut dhanyavaad!
बहुत सुन्दर आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ........बहुत अच्छा लगा.......बहुत सुन्दर लगी पहली ही पोस्ट...........शुक्रिया आपका हमारे ब्लॉगस पर आने का और उन्हें फॉलो करने का |
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति ...इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई ।
ReplyDeleteइमरान जी, सदा जी : धन्यवाद, ख़ुशी हुई कि अच्छी लगी आपको! :)
ReplyDeleteब्लौग पर आपका हार्दिक अभिनन्दन!
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति समप्र्न के भाव ही जीवन मेन सुख का रंग घोल सकते हैं ...अच्छा लगा आज आपके ब्लॉग पर आना आपको भी समय मिले कभी तो आयेगा मेऋ पोस्ट ओर आपका स्वागत हाइ
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना मधुरेश जी।
ReplyDeleteप्रतीक संचेती
Bahutsunder full of simplicity n beauty that u miss out in mall culture and rat race. God bless!
ReplyDeletetha aanajan aapke hunar se `aage badte gana`1
ReplyDeletethe most beautiful creations are the ones that narrate the deepest threads of life in the most simple colours :) this poem has achieved just that :) simply love it!
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