कभी न्यारी-सी प्यारी बातें,
कभी विचारों से भरी बातें,
उर के भीतर एक द्वंद्व मैं
अनायास ही लड़ता हूँ!
मैं खुद से बातें करता हूँ!
खुद को ही दो टुकड़ों में कर
खुद ही कहता, खुद सुनता हूँ.
कोलाहल में सामंजस्य का
नव नित रूप मैं गढ़ता हूँ.
मैं खुद से बातें करता हूँ!
स्व-चिंतन ही आत्मबोध है,
अंतर-मनन सर्वोत्तम शोध है,
मन के गागर को मैं नित नित
गंगा-जमुना से भरता हूँ.
मैं खुद से बातें करता हूँ!
Picture Courtesy: Santanu Sinha
स्व-चिंतन ही आत्मबोध है,
ReplyDeleteअंतर-मनन सर्वोत्तम शोध है,
मन के गागर को मैं नित नित
गंगा-जमुना से भरता हूँ.
मैं खुद से बातें करता हूँ!
...बहुत खूब! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteब्लॉग पर आगमन और समर्थन प्रदान करने का आभार, धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई.
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bahut hi sundar bhavpurn abhivykti hai...
ReplyDeletebahut hi sundar aur prabhavi hai aapke dil ki baten
ReplyDeleteKailash ji, Maheshwari ji, Shukla ji, Reena ji, Ashok ji : Protsahana ke liye aap sabhi ko bahut dhanyavaad :)
ReplyDeleteBahut sahi, sundar aur saralta se kahi gayi abhivyakti.. bachut acchi lagi mere bahi.. Apni soch ko lekhani se nikharte raho.. aisi kuch aur rachna post karo..
ReplyDeleteThank you Bishal Bhaiya :) :)
ReplyDeleteIt has been said... out of quarrel with others we create rhetoric and out of quarrel with our own self, we create poetry!
ReplyDeletekeep creating such magic!!!
अति सुन्दर......!!
ReplyDeleteअति सुन्दर......!!
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