सहसा ही छू लेते हो मन को तुम,
और साँसें बस थमी रह जाती हैं.
आवाज़ धडकनों की इतनी तेज़
कि कानों तक गूँज जाती है.
दिल उमड़ता है ऐसे कि जैसे
सब कुछ न्योछावर कर दे!
कितनी विह्व्हलता आ जाती है!
प्रेम औ' समर्पण के समागम में
तृष्णा बस लेष रह जाती है.
और एक ही कुछ होता है,
थोड़ा तुम-सा, थोड़ा मुझ-सा,
पृथा बस घुल सी जाती है!
Picture Courtesy: http://artandperception.com/2008/03/natural-abstracts.html
ek kshan aata hai, jab kuchh bhi kehne ko nahi hota hai, ye wahi kshan hai!
ReplyDeleteYe to bahut badi baat keh di aapne!! :)
ReplyDelete"pratha" kya hota h ?? :P
ReplyDelete@ Purvi: 'Prtha/ Pr(u)tha/ Pr(i)tha (abstract noun)' ... root word "Prith" ... means 'alag/distinct hone ki bhaawna'
ReplyDeletewaah bahut hi bdhiya!
ReplyDeleteएक ही कुछ होता है,
ReplyDeleteथोड़ा तुम-सा, थोड़ा मुझ-सा,
पृथा बस घुल सी जाती है!
एक ऐसी स्थिति ...मौन भी बोलता है जहां ....वाह!!!!