Thursday, December 8, 2011

स्पर्श




सहसा ही छू लेते हो मन को तुम,
और साँसें बस थमी रह जाती हैं.
आवाज़ धडकनों की इतनी तेज़
कि कानों तक गूँज जाती है.
दिल उमड़ता है ऐसे कि जैसे
सब कुछ न्योछावर कर दे!
कितनी विह्व्हलता आ जाती है!
प्रेम औ' समर्पण के समागम में
तृष्णा बस लेष रह जाती है.
और एक ही कुछ होता है,
थोड़ा तुम-सा, थोड़ा मुझ-सा,
पृथा बस घुल सी जाती है!

Picture Courtesy: http://artandperception.com/2008/03/natural-abstracts.html

6 comments:

  1. ek kshan aata hai, jab kuchh bhi kehne ko nahi hota hai, ye wahi kshan hai!

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  2. Ye to bahut badi baat keh di aapne!! :)

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  3. @ Purvi: 'Prtha/ Pr(u)tha/ Pr(i)tha (abstract noun)' ... root word "Prith" ... means 'alag/distinct hone ki bhaawna'

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  4. waah bahut hi bdhiya!

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  5. एक ही कुछ होता है,
    थोड़ा तुम-सा, थोड़ा मुझ-सा,
    पृथा बस घुल सी जाती है!
    एक ऐसी स्थिति ...मौन भी बोलता है जहां ....वाह!!!!

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