इक दौर मुक़म्मल होता था
सच-झूठ का, जीत-हार का,
इक दौर था जीने-मरने का,
इक दौर था नफरत-प्यार का.
अब तो जीते जो हारा है,
सच से अब झूठ ही प्यारा है,
कि कई नावों में पैर यहाँ,
ढूंढे अब कौन किनारा है!
कोई बूझ के भी अनबुझ सा है,
कि फेक है क्या सचमुच सा है,
होते थे कभी दिन-रात यहाँ,
अब तम-प्रकाश का फर्क कहाँ?
दिन के घनघोर उजाले में
अंतस में तम घर करता है,
अब रात कहाँ आती है यहाँ,
सबकुछ बेदार चमकता है!
अब तो जीते जो हारा है,
ReplyDeleteसच से अब झूठ ही प्यारा है,
कि कई नावों में पैर यहाँ,
ढूंढे अब कौन किनारा है!
बेहतरीन पंक्तियाँ....
शुक्रिया मोनिका दीदी :)
Deleteआपका नियमित ब्लॉग पर आना और उत्साहवर्धन करना बहुत अच्छा लगता है।
स्नेहाभिलाषी,
मधुरेश
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...
ReplyDelete
Deleteबहुत धन्यवाद आपको :)
प्रभावी लेखन -
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत ही उत्साहवर्धक है .. बस यूँही मार्गदर्शन मिलता रहे आपका।
Deleteस्नेहाभिलाषी,
मधुरेश
behtreen abhivaykti....
ReplyDeletebahut dhanyavaad :)
Deleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteजन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सादर
Deleteशुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद यशवंत भाई।। और फेसबुक पर भी आपकी शुभकामनाओं वाली पोस्ट बहुत प्यारी लगी हमें।
सादर
मधुरेश
कि कई नावों में पैर यहाँ,
ReplyDeleteढूंढे अब कौन किनारा है!
कोई बूझ के भी अनबुझ सा है,
.बेहतरीन ............
धन्यवाद आपका। और ब्लॉग पर पहली बार आपके आने की हार्दिक ख़ुशी है मुझे।
Deleteदिन के घनघोर उजाले में
ReplyDeleteअंतस में तम घर करता है,
अब रात कहाँ आती है यहाँ,
सबकुछ बेदार चमकता है!.....बहुत बढ़िया, अच्छा लगा
new postक्षणिकाएँ
Deleteशुक्रिया!
बहुत सुन्दर मधुरेश भाई.
ReplyDelete
Deleteशुक्रिया निहार भाई :)
अब तम-प्रकाश का फर्क कहाँ?
ReplyDeleteदिन के घनघोर उजाले में
अंतस में तम घर करता है,
अब रात कहाँ आती है यहाँ,
सबकुछ बेदार चमकता है!
जगमगाती चकाचौंध .....और उदास मन ....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...मधुरेश ।
आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत ही उत्साहवर्धक है .. बस यूँही मार्गदर्शन मिलता रहे आपका।
Deleteस्नेहाभिलाषी,
मधुरेश
भावनात्मक रचना
ReplyDeleteरश्मि मौसी, आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत ही उत्साहवर्धक है .. बस यूँही मार्गदर्शन मिलता रहे आपका।
Deleteस्नेहाभिलाषी,
मधुरेश
आज के हालात को सरलता से व्यक्त कर दिया ...
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावी ...
जनम दिन की बधाई ...
शुभकामनाओं के लिए बहुत धन्यवाद। :)
Deleteआपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत ही उत्साहवर्धक है .. बस यूँही मार्गदर्शन मिलता रहे आपका।
स्नेहाभिलाषी,
मधुरेश
बहुत ही सुन्दर ..........
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद।
Deleteसादर
कोई बूझ के भी अनबुझ सा है,
ReplyDeleteकि फेक है क्या सचमुच सा है....
यह तो अपना अपना विश्वास है ....जो कहता है वही सच है
आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत ही उत्साहवर्धक है .. बस यूँही मार्गदर्शन मिलता रहे आपका।
Deleteस्नेहाभिलाषी,
मधुरेश
बहुत सहज, सरल और प्रभावी रचना, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत ही उत्साहवर्धक है .. बस यूँही मार्गदर्शन मिलता रहे आपका।
Deleteस्नेहाभिलाषी,
मधुरेश
दिन के घनघोर उजाले में
ReplyDeleteअंतस में तम घर करता है,very nice.....
thanks :)
Delete
ReplyDeleteदिनांक 06/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
समयाभाव के कारण आजकल प्रतिदिन हलचल के पोस्ट पढ़ पाना संभव नहीं हो पा रहा। बहरहाल, सप्ताहांत में अपने फॉलो किये हुए ब्लोग्स निश्चित पढता हूँ ... रचना लिंक करने के लिए आभार।
Delete"अब तो जीते जो हारा है,
ReplyDeleteसच से अब झूठ ही प्यारा है,
कि कई नावों में पैर यहाँ,
ढूंढे अब कौन किनारा है!
कोई बूझ के भी अनबुझ सा है,
कि फेक है क्या सचमुच सा है,
होते थे कभी दिन-रात यहाँ,
अब तम-प्रकाश का फर्क कहाँ?"...........बहुत सटीक प्रस्तुति
अपने ब्लॉग पर आने का निमंत्रण दे रही हूँ ....आप आयेगीं तो मुझे ख़ुशी होगी
http://shikhagupta83.blogspot.in/2013/03/blog-post_4.html
धन्यवाद आपका। और ब्लॉग पर पहली बार आपके आने की हार्दिक ख़ुशी है मुझे। आपका ब्लॉग निश्चित देखूंगा।
DeleteBahut khub...
ReplyDeleteSadar
Dhanyavaad bhai!
Deleteबहुत खूबसूरती से अभिव्यक्त
ReplyDeleteवर्तमान की सामाजिक राजनैतिक परिस्थितियाँ
सटीक और सार्थक मधुरेश जी
बहुत धन्यवाद। और ब्लॉग पर पहली बार आपके आने की हार्दिक ख़ुशी है मुझे।
Deleteसादर
होते थे कभी दिन-रात यहाँ,
ReplyDeleteअब तम-प्रकाश का फर्क कहाँ?
जिन्दगी कुछ ऐसे ही उलझ गयी है .....
सही कहा भाई आपने ... आधुनिकता की उलझन ...
Deleteशुक्रिया इमरान भाई :)
ReplyDeleteसार्थक प्रस्त्तुति.
ReplyDeleteशिवरात्रि की शुभकामनाएँ.
अच्छी रचना
ReplyDeleteनीरज 'नीर'
कृपया पधारें
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा):
सुंदर लिखा , बधाई आप को
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