सुख की वृष्टि, दुःख का सूखा,
कभी तुष्ट, कभी प्यासा-भूखा,
वन हैं, तृण है, नग है, खोह है,
विस्तृत इसकी चौपाटी रे!
मन माटी रे!
नेह नीर से सन सन जाए,
कच्चे में आकार बनाए,
और फिर उसको खूब तपाए,
ये कुम्हार की बाटी रे!
मन माटी रे!
मेड़ बना चहु ओर जो बांधे,
फिर क्या कलुषित लहरें फांदे!
तुष्ट ह्रदय सम शीत उष्ण जो,
सुफल तरुवर उस घाटी रे!
मन माटी रे!
जो बहाव को बाँध न पाए,
या कच्चे में तप ना पाए,
और लहरों में घुलता जाए,
खुद की नियति फिर काटी रे!
मन माटी रे!
Beautiful! Esp. The first paragraph. :-)
ReplyDeleteBeautiful! Esp. The first paragraph. :-)
ReplyDeleteThanks :) (I know ki aap kaun hain ;) :P
Deleteबहुत खूब मधुरेश भाई.
ReplyDeleteशुक्रिया निहार भाई :)
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति | बधाई
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
शुक्रिया भाई :)
Deleteवाह वाह बहुत खूब !!! पढ़कर ....सुरेन्द्र शर्मा जी की लाइन याद आ गयी " अपने सपनों को सीमाओं में बांध कर रखिये वरना ये शौक एक दिन गुनाहों में बदल जायेंगे"
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Deleteशुक्रिया विश्वविजय भाई :)
अच्छा लगा आपका ब्लॉग पर आना .. आपके भी पोस्ट का इंतज़ार रहेगा हमें।
संग्रहणीय रचना .....
ReplyDeleteगहन और बहुत सुंदर ...
हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें ....
इस अमूल्य टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार। :) :)
Deleteसादर
मधुरेश
सुख की वृष्टि, दुःख का सूखा,
ReplyDeleteकभी तुष्ट, कभी प्यासा-भूखा,
वन हैं, तृण है, नग है, खोह है,
विस्तृत इसकी चौपाटी रे!
मन माटी रे!
नेह नीर से सन सन जाए,
कच्चे में आकार बनाए,
और फिर उसको खूब तपाए,
ये कुम्हार की बाटी रे!
मन माटी रे!
बहुत सुंदर
latest postअनुभूति : प्रेम,विरह,ईर्षा
atest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
नेह नीर से सन सन जाए,
ReplyDeleteकच्चे में आकार बनाए,
और फिर उसको खूब तपाए,
ये कुम्हार की बाटी रे!
मन माटी रे!
बहुत सुंदर ।
धन्यवाद संगीता आंटी,
Deleteसादर
मधुरेश
मेड़ बना चहु ओर जो बांधे,
ReplyDeleteफिर क्या कलुषित लहरें फांदे!
तुष्ट ह्रदय सम शीत उष्ण जो,
सुफल तरुवर उस घाटी रे!
मन माटी रे!
...बहुत सुन्दर मधुरेश .....!
Deleteबहुत ख़ुशी होती है आपकी उत्साहवर्धक टिपण्णी पढके :)
सादर
नेह नीर से सन सन जाए,
ReplyDeleteकच्चे में आकार बनाए,
और फिर उसको खूब तपाए,
ये कुम्हार की बाटी रे!
मन माटी रे! ......... भावनाओं के कुम्हार ने शब्दों की मिटटी को सही आकार दिया है
Deleteबस आपका स्नेहाभिलाषी हूँ। इस अमूल्य टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।
सादर
मधुरेश
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
Deleteधन्यवाद यशवंत भाई :)
बहुत शानदार उत्कृष्ट प्रस्तुति,,,बधाई मधुरेश जी
ReplyDeleterecent post: बसंती रंग छा गया
जो बहाव को बाँध न पाए,
ReplyDeleteया कच्चे में तप ना पाए,
और लहरों में घुलता जाए,
खुद की नियति फिर काटी रे!
मन माटी रे!...
बहुत ही लाजवाब ... मन की नियति तो माटी के हाथ ही है ...
बस आपका स्नेहाभिलाषी हूँ। इस अमूल्य टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।
Deleteसादर
मधुरेश
the imagery of your words is very deep and thought provoking :)
ReplyDeleteThanks Archika.. m glad you like reading here :)
Deleteमन माटी रे!
ReplyDeleteमर्म को छूते भाव
सुन्दर काव्य-कृति..
ReplyDeleteशुक्रिया आपका :)
Deleteतन भी माटी और मन भी माटी.........बहुत ही सुन्दर।
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Deleteइमरान भाई, आपने तो एक ही पंक्ति में पूरा सार लिख डाला !!
शुक्रिया आपका :)
सुख की वृष्टि, दुःख का सूखा,
ReplyDeleteकभी तुष्ट, कभी प्यासा-भूखा,
वन हैं, तृण है, नग है, खोह है,
विस्तृत इसकी चौपाटी रे!
मन माटी रे!
मन, जीवन, संसार... सब माटी रे...
बहुत गहन भाव, शुभकामनाएँ.
नेह नीर से सन सन जाए,
ReplyDeleteकच्चे में आकार बनाए,
और फिर उसको खूब तपाए,
ये कुम्हार की बाटी रे!
मन माटी रे!
क्या बात है ... अनुपम भावों में बंधे शब्द
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बहुत धन्यवाद सीमा दीदी :)
Deleteसादर
मधुरेश
जो बहाव को बाँध न पाए,
ReplyDeleteया कच्चे में तप ना पाए,
और लहरों में घुलता जाए,
खुद की नियति फिर काटी रे!
मन माटी रे!
सुंदर शब्दों में जीवन का सत्य..
बहुत धन्यवाद :)
DeleteBahut sundar, I loved the second verse.
ReplyDeleteThanks Saru! :)
Deletehave been lately very engaged, so pardon me for not following your recent posts, will be back soon!
सुख की वृष्टि, दुःख का सूखा,बहुत गहरा भाव इस पकती में ...
ReplyDelete...............
नेह नीर से सन सन जाए,
कच्चे में आकार बनाए,
और फिर उसको खूब तपाए,
ये कुम्हार की बाटी रे!
मन माटी रे!
इससे बेहतर मन को समझा नही जा सकता .....मन खुश हुआ आपके ब्लॉग पर आकर ......
सुख की वृष्टि, दुःख का सूखा,बहुत गहरा भाव इस पकती में ...
ReplyDelete...............
नेह नीर से सन सन जाए,
कच्चे में आकार बनाए,
और फिर उसको खूब तपाए,
ये कुम्हार की बाटी रे!
मन माटी रे!
इससे बेहतर मन को समझा नही जा सकता .....मन खुश हुआ आपके ब्लॉग पर आकर ......
Deleteहार्दिक ख़ुशी हुई कि आपको यहाँ आना अच्छा लगा। :)
सादर
मधुरेश
सुन्दर प्रस्तुति... बधाई
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