Tuesday, January 22, 2013

उठ के हुंकार पुरजोर लगा

'नेताजी' सुभाषचंद्र बोस आज अगर होते, तो फिर से उन्हें एक 'आजाद हिन्द फ़ौज' बनानी पड़ती, वो भी अपने ही हिन्दुस्तानियों के खिलाफ लड़ने के लिए।   एक गीत उनकी प्रेरणा से:




क्यों कलरव का है ग्रास बना?
क्यों शिथिल आत्म-विश्वास बना?
क्यों नियति का है दास बना?
उठ के हुंकार पुरजोर लगा।

क्यों क्षुब्ध हुआ, संवेदनहीन?
क्यों बना समाज चरित्रविहीन?
तप-ताप बढ़ा, हो नष्ट मलिन,
उठ के हुंकार पुरजोर लगा।

तज क्लीय तू पौरुष मन में ठान,
कर वध जो करे स्त्री अपमान,
हो इस समाज का नवर्निर्माण,
उठ के हुंकार पुरजोर लगा।

'जय हिन्द'

Picture Courtesy: http://www.flickr.com/photos/humayunnapeerzaada/6480943555/

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http://www.change.org/petitions/set-up-a-multi-disciplinary-inquiry-to-crack-bhagwanji-netaji-mystery#share

18 comments:

  1. अराजकता के दौर में सच में नवनिर्माण की आवश्यकता है...... सुंदर अभिव्यक्ति

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  2. ओज से परिपूर्ण बेहतरीन गीत !


    सादर

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    1. धन्यवाद यशवंत भाई :)

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  3. ओज से ओज से परिपूर्ण रचना परिपूर्ण रचना

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    1. धन्यवाद रश्मि मौसी! :)

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  4. नई पुरानी हलचल में पोस्ट शामिल करने के लिए आभार :)
    सादर
    मधुरेश

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  5. बहुत जोरदार रचना मधुरेश भाई. इसी ज़ज्बे की जरूरत है देश में नूतन विहान के लिए, जन उत्थान के लिए, स्त्री सम्मान के लिए.

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  6. क्यों क्षुब्ध हुआ, संवेदनहीन?
    क्यों बना समाज चरित्रविहीन?
    तप-ताप बढ़ा, हो नष्ट मलिन,
    उठ के हुंकार पुरजोर लगा।

    जोश दिलाती पंक्तियाँ...बधाई !

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  7. बहुत बढ़िया, ऊर्जा से भरी हुई रचना !:)
    ~God Bless!!!

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  8. ओज से परिपूर्ण रचना ******क्यों कलरव का है ग्रास बना?
    क्यों शिथिल आत्म-विश्वास बना?
    क्यों नियति का है दास बना?
    उठ के हुंकार पुरजोर लगा।

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  9. हो इस समाज का नवर्निर्माण,
    उठ के हुंकार पुरजोर लगा।

    वास्तव में आज ऐसे हुंकार की जरुरत है ....

    जय हिन्द!

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  10. power pack poetry madhuresh....

    bless you.

    anu

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  11. Wish all men in India read the last stanza. Even we all are finding answers to the question you asked in the poem. Seriously, we do need a force to teach morals.

    Beautiful and a thought provoking poem.

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  12. उम्दा प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई...

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  13. तप-ताप बढ़ा, हो नष्ट मलिन,
    उठ के हुंकार पुरजोर लगा।

    बहुत सुन्दर आह्वान

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