'नेताजी' सुभाषचंद्र बोस आज अगर होते, तो फिर से उन्हें एक 'आजाद हिन्द फ़ौज' बनानी पड़ती, वो भी अपने ही हिन्दुस्तानियों के खिलाफ लड़ने के लिए। एक गीत उनकी प्रेरणा से:
क्यों कलरव का है ग्रास बना?
क्यों कलरव का है ग्रास बना?
क्यों शिथिल आत्म-विश्वास बना?
क्यों नियति का है दास बना?
उठ के हुंकार पुरजोर लगा।
क्यों क्षुब्ध हुआ, संवेदनहीन?
क्यों बना समाज चरित्रविहीन?
तप-ताप बढ़ा, हो नष्ट मलिन,
उठ के हुंकार पुरजोर लगा।
तज क्लीय तू पौरुष मन में ठान,
कर वध जो करे स्त्री अपमान,
हो इस समाज का नवर्निर्माण,
उठ के हुंकार पुरजोर लगा।
'जय हिन्द'
Picture Courtesy: http://www.flickr.com/photos/humayunnapeerzaada/6480943555/
राष्ट्र हित मे आप भी जुड़िये इस मुहिम से ...
http://www.change.org/petitions/set-up-a-multi-disciplinary-inquiry-to-crack-bhagwanji-netaji-mystery#share
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अराजकता के दौर में सच में नवनिर्माण की आवश्यकता है...... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद आपका :)
Deleteओज से परिपूर्ण बेहतरीन गीत !
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद यशवंत भाई :)
Deleteओज से ओज से परिपूर्ण रचना परिपूर्ण रचना
ReplyDeleteधन्यवाद रश्मि मौसी! :)
Deleteनई पुरानी हलचल में पोस्ट शामिल करने के लिए आभार :)
ReplyDeleteसादर
मधुरेश
बहुत जोरदार रचना मधुरेश भाई. इसी ज़ज्बे की जरूरत है देश में नूतन विहान के लिए, जन उत्थान के लिए, स्त्री सम्मान के लिए.
ReplyDeleteक्यों क्षुब्ध हुआ, संवेदनहीन?
ReplyDeleteक्यों बना समाज चरित्रविहीन?
तप-ताप बढ़ा, हो नष्ट मलिन,
उठ के हुंकार पुरजोर लगा।
जोश दिलाती पंक्तियाँ...बधाई !
बहुत बढ़िया, ऊर्जा से भरी हुई रचना !:)
ReplyDelete~God Bless!!!
ओज पूर्ण रचना ....
ReplyDeleteवीर रस से परिपूर्ण कविता
ReplyDeleteचेतन भगत और भैया जी
ओज से परिपूर्ण रचना ******क्यों कलरव का है ग्रास बना?
ReplyDeleteक्यों शिथिल आत्म-विश्वास बना?
क्यों नियति का है दास बना?
उठ के हुंकार पुरजोर लगा।
हो इस समाज का नवर्निर्माण,
ReplyDeleteउठ के हुंकार पुरजोर लगा।
वास्तव में आज ऐसे हुंकार की जरुरत है ....
जय हिन्द!
power pack poetry madhuresh....
ReplyDeletebless you.
anu
Wish all men in India read the last stanza. Even we all are finding answers to the question you asked in the poem. Seriously, we do need a force to teach morals.
ReplyDeleteBeautiful and a thought provoking poem.
उम्दा प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteतप-ताप बढ़ा, हो नष्ट मलिन,
ReplyDeleteउठ के हुंकार पुरजोर लगा।
बहुत सुन्दर आह्वान