पंख ले पसार पंछी!
इक गगन है स्याह-श्यामल,
इक गगन है पाक-निर्मल,
इस गगन से उस गगन तक
उड़ने को तैयार पंछी!
पंख ले पसार पंछी!
आकाश ये सीमाविहीन है,
और धरा पे तू परीन है,
थाम मत अब ज़ोर दे कर
बाँध मन के तार पंछी!
पंख ले पसार पंछी!
रुक गया जो तू विलय को,
तो रहेगा हीन जय को,
है ऋतु बहते मलय की
कर ले साझा सार पंछी!
पंख ले पसार पंछी!
कर ले साझा सार पंछी!
ReplyDeleteपंख ले पसार पंछी!
bahut sundar sakaratmak bhav se paripoorn rachna ...
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 19/09/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteआकाश ये सीमाविहीन है
ReplyDeleteऔर धरा पे तू परीन है
थाम मत अब जोर देकर
बांध मन के तार पंछी
पंख ले पसार पंछी
बेहतरीन...मन की उड़ान की सार्थक अभिव्यक्ति !!
इक गगन है स्याह-श्यामल,
ReplyDeleteइक गगन है पाक-निर्मल,
इस गगन से उस गगन तक
उड़ने को तैयार पंछी!
पंख ले पसार पंछी!
वाह. बेहद खुबसुरत प्रस्तुति.
एक नई उड़ान भर ले रे पंछी ...
ReplyDeleteरुक गया जो तू विलय को,
ReplyDeleteतो रहेगा हीन जय को,
है ऋतु बहते मलय की
कर ले साझा सार पंछी!
पंख ले पसार पंछी! ...बहुत सुन्दर भाव..
ReplyDeleteरुक गया जो तू विलय को,
तो रहेगा हीन जय को,
है ऋतु बहते मलय की
कर ले साझा सार पंछी!
पंख ले पसार पंछी!
....आपने सही कहा
सार्थक सुंदर प्रस्तुति,,,,!!!
bahut sundar kavita
ReplyDeleteaakash anant hai, mat tham , nai unchai ko chhu le too.
ReplyDeleteऊँचा उड़ते जा ओ पंछी ....
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना मधुरेश.
सस्नेह
अनु
सकारात्मक अभिव्यक्ति, बहुत सुंदर.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत
ReplyDeleteपंछी को उड़ते ही जाना है !
ReplyDeleteसार्थक आह्वान !
जीवन की सुन्दर व्याख्या ....
ReplyDeleteरुक गया जो तू विलय को,
ReplyDeleteतो रहेगा हीन जय को,
है ऋतु बहते मलय की
कर ले साझा सार पंछी!
पंख ले पसार पंछी!
अनुपम भाव लिए सशक्त अभिव्यक्ति ।
रुक गया जो तू विलय को,
ReplyDeleteतो रहेगा हीन जय को,
है ऋतु बहते मलय की
कर ले साझा सार पंछी!
पंख ले पसार पंछी! .... आशान्वित उड़ान
जब तक उड़ने की चाह और हिम्मत है ... पंछी उड़ता रह ...
ReplyDeleteभाव मय रचना ...
बहुत ही सुन्दर पोस्ट
ReplyDeleteAnd soar high. Very motivating poem, I read it on a deeper level...:)
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता । मेरा नया पोस्ट आपका इंतजार कर रहा है।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
अनंत गगन में उन्मुक्त उड़ान को व्याकुल रचना ..बहुत सुन्दर लिखते हैं मधुरेश ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर ..... ऊंची उड़ान को प्रेरित करती रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteपंछी की तरह आकाश में उड़ते चलो....
शुभकामनाये...
:-)
बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteदिल से जो भी मांगोगे वह ही मिलेगा, ये गणेश जी का दरबार है,
देवों के देव वक्रतुंडा महाकाया को अपने हर भक्त से प्यार है..
बोलो गणेश भगवान की जय ..
मेरी ओर से आपको एवं आपके परिवार के सदस्यों को श्री गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर सब को शुभ कामनाएं और प्रार्थना करता हूँ कि गणपति सब के मनोरथ सिद्ध करें एवं सबको बुद्धि, विद्या ओर बल प्रदान कर आप की चिंताएं दूर करें.....आप सबका सवाई सिंह आगरा
आप सभी को गणेश चतुर्थी की शुभ कामनाएं..सुगना फाउण्डेशन मेघलासियां
रुक गया जो तू विलय को,
ReplyDeleteतो रहेगा हीन जय को,
है ऋतु बहते मलय की
कर ले साझा सार पंछी!
पंख ले पसार पंछी!
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति |
मेरी नई पोस्ट:-
मेरा काव्य-पिटारा:बुलाया करो
बहुत बढ़िया .....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति!!
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