क्या खाली, क्या भरा यहाँ पे,
सबके हाथों में है प्याला.
सबका एक नशा निश्चित है,
सबकी अपनी-अपनी हाला.
कुछ पी-पी कर जीते हैं और
कुछ जी-जी कर पीते हैं,
नशा नहीं लेकिन सम सबका,
एक नही सबकी मधुशाला.
असमंजस का डेरा जमता,
कितने प्याले! कितनी हाला!
कौन नशा उत्तम है करता,
किसकी हाला, अव्वल हाला?
प्रियतम, पीने के पहले ही,
हम-प्याले तुम ऐसे चुनना,
जिनका एक नशा, इक हाला,
एक हो जिनकी मधुशाला.
Picture Courtesy: Jeet (Jeetender Chugh)
मधुरेश भाई,
ReplyDeleteमैं इस बात से बिलकुल नावाकिफ था की आप वैज्ञानिक अन्वेषण के अलावा कविता भी लिखते हैं. और ना सिर्फ लिखते हैं बल्कि वैसा ही लिखते है जिसे मेरी समझ एक अच्छे कवि की संज्ञा देता है. बहुत अच्छा लगा आपकी कविता पढ़ कर. आपने भी महसूस किया होगा की ऐसी कविता आजकल बहुत कम लोग लिखते हैं. इसे अनवरत जारी रखें.
निहार
निहार भाई, इस हौसला-आफज़ाही के लिए तहे-दिल से शुक्रिया.. प्रयास रहेगा ऐसा ही..
Deleteमधुरेश
bahut badhiya...zindagi ke jaam se ham kya peete hain...ye mayne rakhta hai...
ReplyDeleteज़िंदगी की मधुशाला में हमप्याला मिलाना बहुत ज़रूरी है... सुन्दर कविता लिखी है मधुरेश.
ReplyDeleteप्रियतम, पीने के पहले ही,
ReplyDeleteहम-प्याले तुम ऐसे चुनना,
जिनका एक नशा, इक हाला,
एक हो जिनकी मधुशाला.
...लाज़वाब! बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
वाह ... मधुशाला की याद ताज़ा कर दी आपकी मधुशाला ने ...
ReplyDeleteखूबसूरत विन्यास ... लयात्मक ...
कठिन है 'बच्चन' जी के स्तर पर लिखना... बस प्रेरणा मात्र है जिसे बुनता रहता हूँ... आपके शब्दों से बहुत प्रोत्साहन मिला..
Deleteस्नेहाकांक्षी,
मधुरेश
प्रियतम, पीने के पहले ही,
ReplyDeleteहम-प्याले तुम ऐसे चुनना,
जिनका एक नशा, इक हाला,
एक हो जिनकी मधुशाला.
बहत अच्छा लिखा है मधुरेश जी
bahut sunder.....
ReplyDeleteहलचल में रचना लिंक करने का आभार यशवंत भाई..
ReplyDeleteसादर
क्या खाली, क्या भरा यहाँ पे,
ReplyDeleteसबके हाथों में है प्याला.
सबका एक नशा निश्चित है,
सबकी अपनी-अपनी हाला.
कुछ पी-पी कर जीते हैं और
कुछ जी-जी कर पीते हैं,
नशा नहीं लेकिन सम सबका,
एक नही सबकी मधुशाला....बेजोड़
क्या बेजोड़ है मधुशाला.. मधुरेश ! बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबधाई.
प्रियतम, पीने के पहले ही,
ReplyDeleteहम-प्याले तुम ऐसे चुनना,
जिनका एक नशा, इक हाला,
एक हो जिनकी मधुशाला. ...बहुत सही सोच ...लेकिन ऐसा अक्सर हो नहीं पाता...कहीं ज़मीं तो कहीं आसमान नहीं मिलता .....
आपकी मधुशाला भी ज़बरदस्त चल रही है .... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रियतम, पीने के पहले ही,
ReplyDeleteहम-प्याले तुम ऐसे चुनना,
जिनका एक नशा, इक हाला,
एक हो जिनकी मधुशाला. ..
बहुत ही सशक्त पंक्तियां
मधुशाला कि तर्ज़ पर एक सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeleteदुर्लभ थी वह कलम कविता
ReplyDeleteछलकाती मधु का प्याला
छल छल बहते भाव जहाँ थे
छम छम मन की मधुबाला |
जीवन की आपाधापी के
दे-ले में सब हैं डूबे
हर युग में मतवाला करने
किंतु रहेगी मधुशाला ||
काश के हम चुन सकते हम प्याले...
ReplyDeleteऔर हमारे चुनाव अकसर गलत क्यूँ हो जाते हैं.....
शायद पीने के बाद चुनते हैं क्या इसलिए???
:-)
तुम्हें पढ़ना बड़ा सुखद लगता है मधुरेश.
सस्नेह
अनु
Thanks Anu Di!! My pleasure! :)
Deleteamazing picture :)
ReplyDeletehttp://anna-and-klaudia.blogspot.com/
Mind blowing good. Please tell me how to write so brilliantly in hindi. :)
ReplyDeleteThanks for such words of appreciation... :) It always encourages me to do better.. :)
DeletePlease don't raise the standards here. I am already speechless after reading your latest poem. Don't set such high standards, we come under pressure then:)
Deleteस्पैम मे चली गयी ....खैर ...
ReplyDeleteइतने अच्छे काव्य पर दो टिप्पणी भी चलेंगी ...
बहुत सुंदर लिखा है ...सच जीवन का बहुत सुंदरता से उकेरा है ...सकरतमकता लिए हुए ...
बहुत सुंदर मन के भाव ...!!
शुभकामनायें ॥!!
कुछ पी-पी कर जीते हैं और
ReplyDeleteकुछ जी-जी कर पीते हैं,
नशा नहीं लेकिन सम सबका,
एक नही सबकी मधुशाला.
बहुत सुंदर मधुरेश. यह एक नया अध्याय है मधुशाल का. उतना ही गंभीर और उतना ही गहन.
भाव,भाषा एवं अभिव्यक्ति सराहनीय है।आपने तो बच्चन जी को जीवित कर दिया है। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteNicely written! :) madhushala!
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