Saturday, September 22, 2012

हमप्याले...


क्या खाली, क्या भरा यहाँ पे,
सबके हाथों में है प्याला.
सबका एक नशा निश्चित है,
सबकी अपनी-अपनी हाला.
कुछ पी-पी कर जीते हैं और
कुछ जी-जी कर पीते हैं,
नशा नहीं लेकिन सम सबका,
एक नही सबकी मधुशाला.

असमंजस का डेरा जमता,
कितने प्याले! कितनी हाला!
कौन नशा उत्तम है करता,
किसकी हाला, अव्वल हाला?
प्रियतम, पीने के पहले ही,
हम-प्याले तुम ऐसे चुनना,
जिनका एक नशा, इक हाला,
एक हो जिनकी मधुशाला.

Picture Courtesy: Jeet (Jeetender Chugh)

29 comments:

  1. मधुरेश भाई,
    मैं इस बात से बिलकुल नावाकिफ था की आप वैज्ञानिक अन्वेषण के अलावा कविता भी लिखते हैं. और ना सिर्फ लिखते हैं बल्कि वैसा ही लिखते है जिसे मेरी समझ एक अच्छे कवि की संज्ञा देता है. बहुत अच्छा लगा आपकी कविता पढ़ कर. आपने भी महसूस किया होगा की ऐसी कविता आजकल बहुत कम लोग लिखते हैं. इसे अनवरत जारी रखें.

    निहार

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    1. निहार भाई, इस हौसला-आफज़ाही के लिए तहे-दिल से शुक्रिया.. प्रयास रहेगा ऐसा ही..
      मधुरेश

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  2. bahut badhiya...zindagi ke jaam se ham kya peete hain...ye mayne rakhta hai...

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  3. ज़िंदगी की मधुशाला में हमप्याला मिलाना बहुत ज़रूरी है... सुन्दर कविता लिखी है मधुरेश.

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  4. प्रियतम, पीने के पहले ही,
    हम-प्याले तुम ऐसे चुनना,
    जिनका एक नशा, इक हाला,
    एक हो जिनकी मधुशाला.

    ...लाज़वाब! बहुत सुन्दर प्रस्तुति....

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  5. वाह ... मधुशाला की याद ताज़ा कर दी आपकी मधुशाला ने ...
    खूबसूरत विन्यास ... लयात्मक ...

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    1. कठिन है 'बच्चन' जी के स्तर पर लिखना... बस प्रेरणा मात्र है जिसे बुनता रहता हूँ... आपके शब्दों से बहुत प्रोत्साहन मिला..
      स्नेहाकांक्षी,
      मधुरेश

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  6. प्रियतम, पीने के पहले ही,
    हम-प्याले तुम ऐसे चुनना,
    जिनका एक नशा, इक हाला,
    एक हो जिनकी मधुशाला.
    बहत अच्छा लिखा है मधुरेश जी

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  7. हलचल में रचना लिंक करने का आभार यशवंत भाई..
    सादर

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  8. क्या खाली, क्या भरा यहाँ पे,
    सबके हाथों में है प्याला.
    सबका एक नशा निश्चित है,
    सबकी अपनी-अपनी हाला.
    कुछ पी-पी कर जीते हैं और
    कुछ जी-जी कर पीते हैं,
    नशा नहीं लेकिन सम सबका,
    एक नही सबकी मधुशाला....बेजोड़

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  9. क्या बेजोड़ है मधुशाला.. मधुरेश ! बहुत सुन्दर...

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  10. सुंदर प्रस्तुति.

    बधाई.

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  11. प्रियतम, पीने के पहले ही,
    हम-प्याले तुम ऐसे चुनना,
    जिनका एक नशा, इक हाला,
    एक हो जिनकी मधुशाला. ...बहुत सही सोच ...लेकिन ऐसा अक्सर हो नहीं पाता...कहीं ज़मीं तो कहीं आसमान नहीं मिलता .....

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  12. आपकी मधुशाला भी ज़बरदस्त चल रही है .... सुंदर प्रस्तुति

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  13. प्रियतम, पीने के पहले ही,
    हम-प्याले तुम ऐसे चुनना,
    जिनका एक नशा, इक हाला,
    एक हो जिनकी मधुशाला. ..
    बहुत ही सशक्‍त पंक्तियां

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  14. मधुशाला कि तर्ज़ पर एक सुन्दर पोस्ट।

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  15. दुर्लभ थी वह कलम कविता
    छलकाती मधु का प्याला
    छल छल बहते भाव जहाँ थे
    छम छम मन की मधुबाला |
    जीवन की आपाधापी के
    दे-ले में सब हैं डूबे
    हर युग में मतवाला करने
    किंतु रहेगी मधुशाला ||

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  16. काश के हम चुन सकते हम प्याले...
    और हमारे चुनाव अकसर गलत क्यूँ हो जाते हैं.....
    शायद पीने के बाद चुनते हैं क्या इसलिए???
    :-)

    तुम्हें पढ़ना बड़ा सुखद लगता है मधुरेश.
    सस्नेह
    अनु

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  17. Mind blowing good. Please tell me how to write so brilliantly in hindi. :)

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    1. Thanks for such words of appreciation... :) It always encourages me to do better.. :)

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    2. Please don't raise the standards here. I am already speechless after reading your latest poem. Don't set such high standards, we come under pressure then:)

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  18. स्पैम मे चली गयी ....खैर ...
    इतने अच्छे काव्य पर दो टिप्पणी भी चलेंगी ...
    बहुत सुंदर लिखा है ...सच जीवन का बहुत सुंदरता से उकेरा है ...सकरतमकता लिए हुए ...
    बहुत सुंदर मन के भाव ...!!
    शुभकामनायें ॥!!

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  19. कुछ पी-पी कर जीते हैं और
    कुछ जी-जी कर पीते हैं,
    नशा नहीं लेकिन सम सबका,
    एक नही सबकी मधुशाला.

    बहुत सुंदर मधुरेश. यह एक नया अध्याय है मधुशाल का. उतना ही गंभीर और उतना ही गहन.

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  20. भाव,भाषा एवं अभिव्यक्ति सराहनीय है।आपने तो बच्चन जी को जीवित कर दिया है। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  21. This comment has been removed by the author.

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