जब तक थोड़ी भी अज्ञानता है, तब तक सम्पूर्णता नहीं है... और जब तक सम्पूर्णता नहीं
है, तब तक ये मन तो अधजल गगरी ही है ना... कैसे समझाऊँ इसे... ?
काहे छलको रे गगरी अधजल,
समझो सुधि अपनी तेज चपल?
जब जानते हो जीवन है जल,
करना मुट्ठी में प्रयास विफल.
गिरना, लेकिन मत होना विकल
अंतर नित-नित तुम करना प्रबल,
जीता उसने निज जीवन को
सीखा जिसने है जाना संभल.
उर में अब प्रेम अगाध लो भर
धर लो मन में ये विचार विमल
चलना पथ पर तुम धीरज धर
छलके न कभी गगरी अधजल.
Picture Courtesy:http://www.
गिरना, लेकिन मत होना विकल
ReplyDeleteअंतर नित-नित तुम करना प्रबल
वाह! सुन्दर!
सार्थक प्रस्तुति ....!!
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteजब जानते हो जीवन है जल,
करना मुट्ठी में प्रयास विफल.
बहुत सुन्दर मधुरेश....
वाह !!!!! बहुत सुंदर सार्थक सटीक रचना,क्या बात है,बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
कमाल की अभिव्यक्ति ||
ReplyDeleteWah maza aa gaya....
ReplyDeletegyan bhi prapt hua...
सुन्दर!! हिम्मत देनेवाली भावनायों का मस्त तानाबाना बुना गया है I
ReplyDeleteगिरना, लेकिन मत होना विकल
ReplyDeleteअंतर नित-नित तुम करना प्रबल,
जीता उसने निज जीवन को
सीखा जिसने है जाना संभल.
बहुत सुंदर, सकारात्मकता लिए भाव ......
अधजल चलने में ही खुश होते हैं सब
ReplyDeleteछलक रहा है का ख्याल होता है .... जो भर गया वह तर गया
:)
Deleteचलना पथ पर तुम धीरज धर
ReplyDeleteछलके न कभी गगरी अधजल.
sunder.....prerna deti hui.....
उर में अब प्रेम अगाध लो भर
ReplyDeleteधर लो मन में ये विचार विमल
चलना पथ पर तुम धीरज धर
छलके न कभी गगरी अधजल.
बहुत खूब सर!
सादर
यशवंत जी, आभार!
Deleteसादर
कल 30/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
umda post!
ReplyDeletebdhiya rachna hai mdhuresh
ReplyDeleteचलना पथ पर तुम धीरज धर
ReplyDeleteछलके न कभी गगरी अधजल
वाह ..बहुत ही बढिया।
waah waah bahut hi sundar.
ReplyDeleteThese lines are profound,
ReplyDelete"गिरना, लेकिन मत होना विकल
अंतर नित-नित तुम करना प्रबल"
Hope I can write as good hindi as you. Truly inspiring!
चलना पथ पर तुम धीरज धर
ReplyDeleteछलके न कभी गगरी अधजल.....
सार्थक रचना....
हार्दिक बधाई।
उर में अब प्रेम अगाध लो भर
ReplyDeleteधर लो मन में ये विचार विमल
चलना पथ पर तुम धीरज धर
छलके न कभी गगरी अधजल.
बहुत खूब ...सही बात कही है ॥
गगरी छलके छलकने दो पर जल को न गिरने दो.. :) बेहद सुंदर प्रेरक कविता. !!
ReplyDeleteउर में अब प्रेम अगाध लो भर
ReplyDeleteधर लो मन में ये विचार विमल
चलना पथ पर तुम धीरज धर
छलके न कभी गगरी अधजल......वाह; बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
आपकी कई कवितायेँ पढ़ीं ...बहुत अच्छा लिखते हैं ...सार्थक रचना !
ReplyDeleteगहन भाव समाये बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें.
अधजल गगरी..संभलत जाए..अति सुन्दर..
ReplyDeleteउर में अब प्रेम अगाध लो भर
ReplyDeleteधर लो मन में ये विचार विमल
चलना पथ पर तुम धीरज धर
छलके न कभी गगरी अधजल.
बहुत सही बात कही है
सुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत. अनमोल सन्देश है जिसे हमें जीवन में उतारना चाहिए...
ReplyDeleteजब जानते हो जीवन है जल,
करना मुट्ठी में प्रयास विफल.
जीता उसने निज जीवन को
सीखा जिसने है जाना संभल.
चलना पथ पर तुम धीरज धर
छलके न कभी गगरी अधजल.
हार्दिक बधाई और आशीष!