काश कि इस दिल में
इक दरवाज़ा होता,
जिसे खोल देता मैं
और जी भर के भर लेता
इन उजालों को.
काश कि ख्वाबों की भी
कोई हार्ड डिस्क होती,
और स्टोर कर लेता मैं
इन लम्हों के
नायाब ख़यालों को.
काश कि इन पलों को
थमने की सहूलियत होती,
और अंतर के संगीत पर
थिरकता ये सुरमयी मन
ले जाता पराकाष्ठा पर
उमंग भरे तालों को.
Picture Courtesy: http://www.416-florist.com/flowerblog/holiday-flowers/white-flower-arrangements.html
काश कि इस दिल में
ReplyDeleteइक दरवाज़ा होता,
काश कि ख्वाबों की भी
कोई हार्ड डिस्क होती,
काश कि इन पलों को
थमने की सहूलियत होती,
काश...काश...काश.... सारी इच्छाएं पूरी हो जाती ....
काश की जीवन भी
ReplyDeleteएक कविता होती...
लिख कर ना भाये
तो मिटा कर दुबारा लिखते...
बहुत सुन्दर ख़याल मधुरेश.
बहुत खूब, बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग " meri kavitayen" पर पधारें, मेरे प्रयास पर अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें .
नूतन शब्द संयोजन व ख्याल ..
ReplyDeleteबहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteसादर
काश कि ख्वाबों की भी
ReplyDeleteकोई हार्ड डिस्क होती,
और स्टोर कर लेता मैं
बहुत सुन्दर
काश कि ख्वाबों की भी
ReplyDeleteकोई हार्ड डिस्क होती,
और स्टोर कर लेता मैं
इन लम्हों के
नायाब ख़यालों को. ... वह डिस्क तो हमेशा साथ होती है , तभी तो पन्ने साथी बनते हैं , ..... बहुत बढ़िया
काश कि इन पलों को
ReplyDeleteथमने की सहूलियत होती,
और अंतर के संगीत पर
थिरकता ये सुरमयी मन
ले जाता पराकाष्ठा पर
उमंग भरे तालों को
कविता अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
यशवंत जी, आभार!
ReplyDeleteबढिया उम्मीदें..
ReplyDeleteआमीन........
वक़्त के साथ ये कामनायें अवश्य ही पूर्ण होंगी.सुंदर व कोमल रचना.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति...कविता बहुत अच्छी लगी....
ReplyDeleteपोस्ट पर आने के लिए आभार,....
फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,..
MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
काश कि इन पलों को
ReplyDeleteथमने की सहूलियत होती,
बहुत ही खूबसूरत ख्याल !
बहुत सुन्दर........बिच वाली पंक्ति कुछ अलग सी लगी।
ReplyDeleteऊपर के दोनों अंतरों के काश ... तो आसानी से प्राप्त किये जा सकते हैं बंधुवर
ReplyDeleteमगर ये काश वाकई काश है
......
काश कि इन पलों को
थमने की सहूलियत होती,
और अंतर के संगीत पर
थिरकता ये सुरमयी मन
ले जाता पराकाष्ठा पर
उमंग भरे तालों को....बस समय ही नहीं रुकता कभी और तो सब संभव है.
सच कहूँ तो जो भी है दिल के अंदर ही है ... स्टोर करने की जगह से के ले रौशनी उजाले भरने तक की जगह ... बार होंसला मजबूत होना चाहिए ...
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी रचना है,फेस बुक पर शेयर कर रही हूँ
ReplyDeletesundar rachna
ReplyDeleteमधुरेश जी आप की ये रचना फेस बुक पर शेयर की थी काफी लोगों को बहुत पसंद आई ,अभी आप की और रचनाये देख रही थी एक ग़ज़ल है ,तुम मेरा हाल न पूछो..... बहुत ही बढिया ग़ज़ल है उस की बधाई स्वीकार करें ,उसे भी फ. बी. पर शेयर कर रही हूँ ( आप के नाम के साथ)
ReplyDeleteअवन्ती जी, ये तो आपका स्नेह है... मुझे ख़ुशी हुई कि कविताएँ आपको अच्छी लगी :)
Deleteसादर
"काश कि इन पलों को
Deleteथमने की सहूलियत होती,
और अंतर के संगीत पर
थिरकता ये सुरमयी मन
ले जाता पराकाष्ठा पर
उमंग भरे तालों को."
बहुत ही सुंदर कल्पना,भाव और अभिव्यक्ति !
kash.....behad sunder.
ReplyDeletebeautiful
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteकाश कि ख्वाबों की भी
ReplyDeleteकोई हार्ड डिस्क होती,
और स्टोर कर लेता मैं
इन लम्हों के
नायाब ख़यालों को.
अभिव्यक्ति की सर्वथा नई भंगिमा! नए युग के नए बिम्बों का बढि़या प्रयोग किया है आपने। अच्छी रचना।
bahut sundar achna hai ,fb par avanti ji ne bhi saanjha ki thee aap ki rachna,aaj dobara padh rhi hun
ReplyDeleteआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDelete......बहुत ही खूबसूरत ख्याल
काश कि ख्वाबों की भी
ReplyDeleteकोई हार्ड डिस्क होती,
नेक ख्याल