मैं तो बिखरे तिनकों-सा था,
तुमने मुझको ऐसा ढाला,
खग-सा उड़ता मैं चिदाकाश में
संग-संग उड़ती ये मधुशाला.
तुम सिन्धु सुधा की निर्झर
मैं था प्यासा, पीनेवाला
तुमसे ही कुछ बूँदें पाकर
तृप्त हुई मेरी मधुशाला.
इन साँसों में अब बसना तुम,
उर में हो तुमसे ही उजाला,
स्नेह-मदिरा अविरत ढरती हो,
अक्षुण्ण रहे ये मधुशाला.
Picture Courtesy: Vimal Kishore
अक्षुण्ण रहे ये मधुशाला ....
ReplyDeleteअद्धभुत अभ्व्यक्ति.... :)
स्नेह मदिरा अनवरत बहती रहे ... सुंदर भाव ...
ReplyDeleteस्नेह-मदिरा अविरत ढरती हो,
ReplyDeleteअक्षुण्ण रहे ये मधुशाला.
बहुत ही सुंदर.....अद्धभुत भाव
waah!umda rachna....
ReplyDeleteवाह .. ये मधुशाला आबाद रहे ...
ReplyDeleteसुन्दर भाव ...
Wah bahut khoob,
ReplyDeleteसंग-संग उड़ती. तृप्त हुई. अक्षुण्ण रहे ये मधुशाला.
Behtareen
अविरल धारा बहती रहे स्नेह मघु शाला की बहुत सुन्दर रचना ....होली की शुभ कामनाएं
ReplyDeletebahut sunder bhaw.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...प्रवाहमयी रचना...
ReplyDeleteशुभकामनाएँ.
sneh madira............waah bahut khoob
ReplyDeletejust awesome...
ReplyDeleteBahut sundar. The way you wrote the last line of each paragraph is just superb!
ReplyDeletewah bhaut hi sundar rachana ...sadar badhai apko.
ReplyDeleteबहुत खूब, बधाई.
Deleteवाह ..बहुत खूब ।
ReplyDeletethanks madhuresh...
ReplyDeletegood to see you.
मधुशाला अक्षुण्ण रहे.. हमारी भी अभिलाषा है..
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