Saturday, September 22, 2012

हमप्याले...


क्या खाली, क्या भरा यहाँ पे,
सबके हाथों में है प्याला.
सबका एक नशा निश्चित है,
सबकी अपनी-अपनी हाला.
कुछ पी-पी कर जीते हैं और
कुछ जी-जी कर पीते हैं,
नशा नहीं लेकिन सम सबका,
एक नही सबकी मधुशाला.

असमंजस का डेरा जमता,
कितने प्याले! कितनी हाला!
कौन नशा उत्तम है करता,
किसकी हाला, अव्वल हाला?
प्रियतम, पीने के पहले ही,
हम-प्याले तुम ऐसे चुनना,
जिनका एक नशा, इक हाला,
एक हो जिनकी मधुशाला.

Picture Courtesy: Jeet (Jeetender Chugh)

Friday, September 14, 2012

पंख ले पसार पंछी!


पंख ले पसार पंछी!

इक गगन है स्याह-श्यामल,
इक गगन है पाक-निर्मल,
इस गगन से उस गगन तक
उड़ने को तैयार पंछी!
पंख ले पसार पंछी!

आकाश ये सीमाविहीन है,
और धरा पे तू परीन है,
थाम मत अब ज़ोर दे कर
बाँध मन के तार पंछी!
पंख ले पसार पंछी!

रुक गया जो तू विलय को,
तो रहेगा हीन जय को,
है ऋतु बहते मलय की
कर ले साझा सार पंछी!
पंख ले पसार पंछी!