ओ अंधियारे के चाँद तेरी
चमक फीकी पड़ती जाए...
काले से पखवाड़े में क्यों
काला तू पड़ता जाए ?..
कोई देखे, कोई ना देखे
अब किसे कौन समझाए...
इस ओर से काला होकर भी
उस ओर तू चमका जाए..
तू है धरा के पास-पास,
चमके, कभी तू धुंधलाए...
क्यों पूनम की चमक तुझे
इक दिन से ज़्यादा न भाए..
देख तो सूरज चमके कैसे
हर दिन एक सुभाए...
तुझे धरा से दूर चमकना
क्यों फिर रास न आए?
अमानिशा के बाद तुझे
फिर से मेरी याद सताए...
मेरी अंधियारी रातों को
फिर से तू चमकाए!!
मधुरेश भाई, एक और नगीना. वाह. अच्छा सोचा है आपने ..इस पार उस पार के बारे में. खुद कई बार अपनी ज़िंदगी भी तो ऐसी ही होती है. चेहरे पर खिलती मुस्कान और अन्दर निस्सीम तम.
ReplyDeleteThird verse onwards, it is so beautiful and profound. Loved the way you mentioned Sun as comparison. Beautiful poem.:)
ReplyDeleteबहुत सुंदर शब्द चयन से भाव सुंदरता से खिले हैं ...
ReplyDeleteबहुत ही कोमल और सुंदर अभिव्यक्ति ....
शुभकामनायें ....
Gahre bhao......bahut khub.
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/10/1.html
ReplyDeleteOne more poetry on moon :)
ReplyDeletegood one....is anything special b?w moon and u ?? :D :P
visited ur blog after a long gap... Its still the same man...full of love, beauty n multi-dynamism.
ReplyDeleteCheers :)
होय पेट में रेचना, चना काबुली खाय ।
ReplyDeleteउत्तम रचना देख के, चर्चा मंच चुराय ।
अमानिशा के बाद तुझे
ReplyDeleteफिर से मेरी याद सताए...
मेरी अंधियारी रातों को
फिर से तू चमकाए!!
खूबसूरत रचना |
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट:-
करुण पुकार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति... सुप्रभात!
ReplyDeleteसुंदर चाँद
ReplyDeleteशर्मा गया होगा
कुछ भी नहीं
कह पाया होगा
कविता बस पढ़
चला गया होगा !
पूनम-मावस दृष्टि-भ्रम,धूप-छाँव का खेल |
ReplyDeleteचाँद कहे जीवन अरे! है सुख-दुख का मेल ||
सुन्दर शब्द चयन....अति सुन्दर भाव से भरपूर!
ReplyDeleteवाह...बहुत सुंदर..चांद के दूसरे पहलू को आपने बड़े सुंदर सवालों में पिरोया है..
ReplyDeleteन जाने क्यों अंधियारे के चाँद से मुझे भी गहरा आकर्षण है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबहुत खूब
:-)
बहुत सुन्दर लगी पोस्ट।
ReplyDeleteसुर , लय और ताल से सजी खूबसूरत रचना |
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