Friday, October 26, 2012

मिथ्यावरण


यह पूनम भी अमानिशा सी
अँधियारा लिपटाती जाती.
औ' बैरन-सी भयी बयार भी
कुटिल शीत कड़काती जाती.

उजियारा बस कहने को है,
अंतर तम का घोर कहर है.
बाहर के चकमक में उर ये
अंतस लौ झुठलाती जाती.

तज दे झूठी राग चमक की,
तज दे अब ना और बहक री,
चल रे अब तू भीतर चल री,
क्यूँ खुद को भरमाती जाती!


O my conscience,
hold me tight.
I'm swaying away,
escape the plight.
For it's so fake-
this outside light.
'n I'm ruining away
my so rich life.
I have to go back,
back- deep inside.
O my conscience,
hold me tight. 



Picture Courtesy: http://nmsmith.deviantart.com/art/Inner-Light-132644163

16 comments:

  1. उत्कृष्ट रचना ..... अति सुंदर शब्द संयोजन

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  2. excellent madhuresh.....
    deep expressions in both the versions....

    just great!!!

    anu

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  3. कल 28/10/2012 को आपकी यह खूबसूरत पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. उत्कृष्ट...
    लयबद्ध पंक्तियाँ!!

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  5. कविता भी सुन्दर और शीर्षक भी.

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  6. बहुत हि बेहतरीन रचना...
    अति सुंदर...
    :-)

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  7. उजियारा बस कहने को है,
    अंतर तम का घोर कहर है.
    बाहर के चकमक में उर ये
    अंतस लौ झुठलाती जाती...गूढ़ मन की गूढ़ दृष्टि

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  8. अति सुंदर रचना......

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  9. gahan atma chintan- ati sundar.
    http://kpk-vichar.blogspot.in

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  10. गहन अभिव्यक्ति...

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  11. Profound and beautiful. Loved this line, 'औ' बैरन-सी भयी बयार भी'

    Even the translation has its own beauty. Wonderful writing!

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  12. उजियारा बस कहने को है,
    अंतर तम का घोर कहर है.
    बाहर के चकमक में उर ये
    अंतस लौ झुठलाती जाती.

    बेहद खूबसूरत और गहरी प्रस्तुति.

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  13. तज दे झूठी राग चमक की,
    तज दे अब ना और बहक री,
    चल रे अब तू भीतर चल री,
    क्यूँ खुद को भरमाती जाती!

    बहुत सुन्दर लगी पोस्ट।

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  14. अति सुन्दर काव्य-कृति.. दोनों भाषा पर आपकी अच्छी पकड़ है.. यूँ ही लिखते रहें..

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  15. तज दे झूठी राग चमक की,
    तज दे अब ना और बहक री,
    चल रे अब तू भीतर चल री,
    क्यूँ खुद को भरमाती जाती!


    कविता अच्छी लगी। यूं ही लिखते रहें। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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