यह पूनम भी अमानिशा सी
अँधियारा लिपटाती जाती.
औ' बैरन-सी भयी बयार भी
कुटिल शीत कड़काती जाती.
उजियारा बस कहने को है,
अंतर तम का घोर कहर है.
बाहर के चकमक में उर ये
अंतस लौ झुठलाती जाती.
तज दे झूठी राग चमक की,
तज दे अब ना और बहक री,
चल रे अब तू भीतर चल री,
क्यूँ खुद को भरमाती जाती!
O my conscience,
hold me tight.
I'm swaying away,
escape the plight.
For it's so fake-
this outside light.
'n I'm ruining away
my so rich life.
I have to go back,
back- deep inside.
O my conscience,
hold me tight.
Picture Courtesy: http://nmsmith.deviantart.com/art/Inner-Light-132644163
उत्कृष्ट रचना ..... अति सुंदर शब्द संयोजन
ReplyDeleteexcellent madhuresh.....
ReplyDeletedeep expressions in both the versions....
just great!!!
anu
कल 28/10/2012 को आपकी यह खूबसूरत पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
उत्कृष्ट...
ReplyDeleteलयबद्ध पंक्तियाँ!!
कविता भी सुन्दर और शीर्षक भी.
ReplyDeleteबहुत हि बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteअति सुंदर...
:-)
ReplyDeleteउजियारा बस कहने को है,
अंतर तम का घोर कहर है.
बाहर के चकमक में उर ये
अंतस लौ झुठलाती जाती...गूढ़ मन की गूढ़ दृष्टि
अति सुंदर रचना......
ReplyDeletegahan atma chintan- ati sundar.
ReplyDeletehttp://kpk-vichar.blogspot.in
गहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteProfound and beautiful. Loved this line, 'औ' बैरन-सी भयी बयार भी'
ReplyDeleteEven the translation has its own beauty. Wonderful writing!
उजियारा बस कहने को है,
ReplyDeleteअंतर तम का घोर कहर है.
बाहर के चकमक में उर ये
अंतस लौ झुठलाती जाती.
बेहद खूबसूरत और गहरी प्रस्तुति.
गहन..!!!
ReplyDeleteतज दे झूठी राग चमक की,
ReplyDeleteतज दे अब ना और बहक री,
चल रे अब तू भीतर चल री,
क्यूँ खुद को भरमाती जाती!
बहुत सुन्दर लगी पोस्ट।
अति सुन्दर काव्य-कृति.. दोनों भाषा पर आपकी अच्छी पकड़ है.. यूँ ही लिखते रहें..
ReplyDeleteतज दे झूठी राग चमक की,
तज दे अब ना और बहक री,
चल रे अब तू भीतर चल री,
क्यूँ खुद को भरमाती जाती!
कविता अच्छी लगी। यूं ही लिखते रहें। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।