Dedicated to 'the braveheart'
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आज़ादी के मायने
आज़ादी के मायने
खुद ही सारे जिस्म को
ज़ंजीरों से बाँध लिया,
और एक अँधेरी कोठरी में
जिंदा दफ़न कर आई।
सोचा एकांत है वहां,
कोई न पहुँचेगा मुझतक,
और कोई न होगा वहाँ
मुझे प्रताड़ित करनेवाला,
न किसी अन्याय के विरुद्ध
गुहार लगानी होगी मुझे,
और न चाहिए होगा मुझे
कोई तीमारदारी करनेवाला।
झाँक के उस कोठरी में
यूँही देखा एक बार मैंने,
एक जिस्म थी खोखली सी,
और मैं आज़ाद, बाहर उसके।
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Picture Courtesy: Pencil Kings, Art by Aditya Ikranagera
बहुत अच्छा मधुरेश भाई...दुःख इसी बात की है कि कुछ सय्याद उस खोखली जिस्म को भी तार-तार कर देना चाहते हैं.....लेकिन .. फिर हम आप भी है उसी दुनिया में...जो उस खोखले जिस्म को देखकर ही खुद खोखला महसूस करते हैं...शायद उतने की दर्द के साथ..इसलिए उम्मीद पर जिए जाते है. बहुत मार्मिक भाव हैं आपकी रचना में.
ReplyDeleteसही कहा आपने निहार भाई। हमारा समाज आज़ादी और बंधन के फर्क को नहीं पहचान पा रहा ... सुरक्षित रहने का अर्थ ये बिलकुल ही नहीं कि हम छिपे छिपे घर में रहें और कहें कि हमें क्या खतरा हो सकता है ... मानसिक परिवर्तन अपरिहार्य है इस समाज का.
Deleteसादर
मधुरेश
बिलकुल मधुरेश भाई. घर की दीवार में एक खिड़की खोल दें और उससे झांकती किरणों से जब ज़िन्दगी के उजालों का भान कराया जाय, मुंह पर घूंघट और वक्ष पर ओढ़नी डाल कर शालीनता तय की जाय और १६ साल की उम्र भी मांग भर कर ज़िन्दगी की पूर्णता तय की जाए.इससे दुखद क्या हो सकता है...अपने बाल अनुभव से कह सकता हूँ की गाँव की स्थिथि बहुत दारुण है. और अपने से ऊपर की पीढ़ी से बदलाव होगा नहीं. बदलाव की कमान हमारे युग को लोगो को ही लेनी होगी. वहीँ से तय होगा सच्चा बदलाव समाज का.
Deleteआकाश को कोई कभी बाँध पाया है ..पर स्थूल को तो दर्द होता ही है..
ReplyDeleteयही दर्द और यही वेदना तो काट खा रही है अमृता दीदी।
Deleteविमर्श के लिए धन्यवाद।
आत्म- मंथन : सुन्दर और सार्थक रचना
ReplyDeleteनई पोस्ट :" अहंकार " http://kpk-vichar.blogspot.in
सार्थक गहन अभिव्यक्ति..
ReplyDeleterecent post: वह सुनयना थी,
धन्यवाद आपका। :)
Deleteसादर
मधुरेश
बहुत मार्मिक भाव ..बहुत गहन आत्म मंथन..शुभकामना मधुरेश..
ReplyDeleteधन्यवाद आंटी। आपकी मूल्यवान टिप्पणियां बहुत प्रोत्साहित करती हैं।
Deleteसादर
मधुरेश
गहन भाव. सुंदर रचना. खूबसूरत प्रस्तुति.
ReplyDeleteधन्यवाद आपका :)
Deleteसादर
मधुरेश
सशक्त और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteसच खोखली हंसी हंस रहा हवा में
ReplyDeleteआपका मधुशाला पे नियमित आना बहुत प्रोत्साहित करता है। बस यूँही आपसे सीखता रहूँ।
Deleteसादर
मधुरेश
अत्यंत भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteआज के परिवेश को
देखते हुए सार्थक ....
बहुत बहुत शुभकामनाएं
शुक्रिया आपका।
Deleteवाह....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मधुरेश...
मार्मिक अभिव्यक्ति है...
सस्नेह
अनु
Thought provoking! Do we know the meaning of freedom? More so, do we have freedom? OR freedom is the ability to see things on a much higher level. Beautiful poem and it evoked so many emotions.
ReplyDeleteYes Saru, the notion of freedom has got maligned in our society. Btw, I came across a nice and thoughtful article on the aftermath of the Delhi incident. You might like reading it. Here is the link: http://www.nascentemissions.com/2013/01/a-month-down-line.html
Deleteविचारणीय....मन को उद्वेलित करते भाव
ReplyDeleteआपका मधुशाला पे नियमित आना बहुत प्रोत्साहित करता है। स्नेहकांक्षी हूँ।
Deleteसादर
मधुरेश
गहन भाव ..........सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteशुक्रिया इमरान भाई।
Deleteसादर
मधुरेश
मन को छूते शब्द ...
ReplyDeleteधन्यवाद सीमा दीदी। उद्वेलित है मन, और उससे ज्यादा इसलिए कि इन घटनाओं के बावजूद भी वाकयों में कमी नहीं आ रही!
Deleteजिस्म के क़फ़स से रूह का पंछी आज़ाद!
ReplyDeleteढ़
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थर्टीन रेज़ोल्युशंस!!!