नियमों को बदलने से क्या होगा,
जब नियत ही न बदल पाई हो?
बात आसमां में उड़ने की क्या हो,
जब ज़मीं पर ही न संभल पाई हो!
बड़ी बड़ी बातों में नहीं रखा है,
जवाब हमारी आजादी का कहीं।
इज्ज़त-ओ-कद्र के दो लफ्ज़ ही पर
जब ज़ुबां हमारी न अमल कर पायी हो!
बात न क़ानून की रह गयी है कहीं,
और न किसी इन्साफ में ही दम है।
गली-नुक्कड़ की गन्दगी पे क्या बोलें,
घर-आँगन में ये कचरा क्या कम है?
ज़रूरत है मानसिकता में बदलाव की,
ज़रूरत है कुरीतियों पे पथराव की।
ज़रूरत है कि इस ज़रूरत को समझे हम,
और घर से ही इस कमी की भरपाई हो।
Picture Courtesy: Priyadarshi Ranjan
Picture Courtesy: Priyadarshi Ranjan
बिलकुल सही बातें लिखी है. सम्मान जब तक घर में न मिलेगा. बाल विवाह, दहेज़ विवाह और "तुम औरत हो" तुम फराक रहो, ऐसे कुत्सित विचार जब तक सबके मन से नहीं जायेंगे तब तक इनसे सच्चे अर्थ में मुक्ति पाना दूभर है. पुरानी रीतियाँ का कह नहीं सकते, पर हाँ ये अहद खुद जरूर कर सकते हैं. ये युग हमारा युग है और बदलाव कम से कम हमारी पीढ़ी की सोच में ही आ जाए तो जीते जी देश में उस समता को देखेंगे जिसे देखने की इच्छा है हमें.
ReplyDeleteनिहार भाई, आपके विचारों और आकांक्षाओं में मेरा भी मत पूरी तरह शामिल है।
Deleteबड़ी बड़ी बातों में नहीं रखा है,
ReplyDeleteजवाब हमारी आजादी का कहीं।
इज्ज़त-ओ-कद्र के दो लफ्ज़ ही पर
जब ज़ुबां हमारी न अमल कर पायी हो!
बहुत बढ़िया
धन्यवाद वंदना जी।
Deleteयह मानसिकता तभी बदलेगी जब समभाव होगा ।
ReplyDelete"जरुरत है मानसिकता में बदलाव की ..."
ReplyDeleteबिलकुल सही बात है, जब तक मानसिकता नहीं बदलती किसी भी बदलाव की आशा करना व्यर्थ है ...नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
बिल्कुल सही लिखा है मधुरेश जी..मानसिकता ही गुलाम है अब तक... बदलाब कहाँ से आएगा?
ReplyDeleteज़रूरत है मानसिकता में बदलाव की,
ReplyDeleteज़रूरत है कुरीतियों पे पथराव की।,,,,,
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,,,,
recent post : नववर्ष की बधाई
बिना मानसिकता मे बदलाव के किसी परिवर्तन की आशा ही नहीं करनी चाहिए।
ReplyDeleteसादर
आपकी कविता मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गई। मेरी कामना है कि आप अहर्निश सृजनरत रहें। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। न्यवाद।
ReplyDeleteसचमुच आवश्यकता है सामाजिक परिवर्तन की
ReplyDeleteज़रूरत है मानसिकता में बदलाव की,
ReplyDeleteज़रूरत है कुरीतियों पे पथराव की।
ज़रूरत है कि इस ज़रूरत को समझे हम,
और घर से ही इस कमी की भरपाई हो।
बिल्कुल सच कहा है आपने ...
सच मानसिकता बदले बिना हालात कभी नहीं बदलने वाले
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
नववर्ष की हार्दिक बधाई।।।
ज़रूरत है मानसिकता में बदलाव की,
ReplyDeleteज़रूरत है कुरीतियों पे पथराव की।
बहुत ही शानदार पोस्ट ।
बात न क़ानून की रह गयी है कहीं,
ReplyDeleteऔर न किसी इन्साफ में ही दम है।
गली-नुक्कड़ की गन्दगी पे क्या बोलें,
घर-आँगन में ये कचरा क्या कम है?
...बहुत सटीक और सशक्त अभिव्यक्ति..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
अब मानसिकता बदलनी ही चाहिए ..
ReplyDeleteज्वलंत विषय पर गंभीर विचार मंथन.
ReplyDeleteआपको नव वर्ष २०१३ मंगलमय हो.
मानसिकता को बदलना होगा ...
ReplyDeleteमंगलकामनाएं ...
बात न क़ानून की रह गयी है कहीं,
ReplyDeleteऔर न किसी इन्साफ में ही दम है।
गली-नुक्कड़ की गन्दगी पे क्या बोलें,
घर-आँगन में ये कचरा क्या कम है?
satik panktiyan...