झड़ते-बिखरते,
सूखे पीले पत्ते.
नव-आवरण को
वृक्ष तरसते.
सब्र करो, उग आयेंगे
फिर से हरे पत्ते!
चिड़ियों की चहक से
चहकती-सी दुनिया.
फूलों की खुशबू से
महकती-सी दुनिया.
कई छोड़ चले, कई आएंगे
फिर से चमकते दमकते!
क्यूँ हो मन में
विरह का क्षोभ?
क्यूँ पाले कोई
मिलन का लोभ?
कहती नियति- ढल जायेंगे
यूँही मिलते-बिछड़ते!
Picture Courstey: Mark Schellhase http://commons.wikimedia.org/wiki/User:Mschel
Dedicated to my close-to-heart friends Saurabh, Srishti and Vishal- you make the spring of my life...
realy very nice poetry,amazing creativity.
ReplyDeleteकई छोड़ चले, कई आएंगे
ReplyDeleteफिर से चमकते दमकते!
सार यही है...
परिवर्तन ही शाश्वत है!