पंख पंखुडियां,
पतली पगडंडियाँ,
बाग़- बागीचे,
खेत खलिहान.
ऊपर नीरद,
नीचे नहरें,
पीली सरसों,
सुनहरी धान.
बरसे बरखा,
रोमिल रिमझिम,
सुमधुर सावन
का आदान.
बाह्य धरा तो
है संतृप्त-सी,
फिर भी आतुर
ये अन्तःकरण
ये अन्तःकरण
आशाओं की
घिरी घटा में,
मुग्ध-मधुर हो
मचले ये मन.
Dedicated to: Amit Bhaiya, Swarnlata Di, Supratim da, Garima Di and Shikha Di
Picture Courtsey: http://www.amsterdam-artgallery.com/m_singh/the_village.html
Bahut sundar.. :)
ReplyDeleteShukriya Devika :) :)
ReplyDeleteसुन्दर वर्णन!
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