Friday, July 29, 2011

Village on the go


 
पंख पंखुडियां,
पतली पगडंडियाँ,
बाग़- बागीचे,
खेत खलिहान.


ऊपर नीरद,
नीचे नहरें,
पीली सरसों,
सुनहरी धान.


बरसे बरखा,
रोमिल रिमझिम,
सुमधुर सावन
का आदान.


बाह्य धरा तो
है संतृप्त-सी,
फिर भी आतुर
ये अन्तःकरण


आशाओं की
घिरी घटा में,
मुग्ध-मधुर हो
मचले ये मन.


Dedicated to: Amit Bhaiya, Swarnlata Di, Supratim da, Garima Di and Shikha Di 

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