वो कास्ट देखते हैं,
सब-कास्ट देखते हैं,
कुंडली देखते हैं,
टीपन मिलाते हैं,
दोष देखते हैं,
गुण मिलाते हैं.
कोई मिलान नहीं
भावनाओं का,
विचारों का,
अनुभूति का,
आधारों का,
सपनों का,
एहसासों का.
कैसा मिलन ये!
काल-संकुचित मैं!
Picture Courtesy: http://humblepiety.blogspot.com/2012/03/all-their-works-are-performed-to-be.html
कोई मिलान नहीं
ReplyDeleteभावनाओं का,
विचारों का,
अनुभूति का,
आधारों का,
सपनों का,
एहसासों का. सही है कुंडली से ज्यदा जरुरी है ये सब मिलना
दरअसल जब बाल विवाह हुआ करते थे तब बच्चों के सुखद जीवन के लिए कुंडली का महत्व था ....अब नहीं है
कैसा मिलन ये!
ReplyDeleteकाल-संकुचित मैं!
उफ़ ! कम शब्दों में अंतर्द्वंद और विसंगतियों का जखीरा दे दिया
bahut sahi likha aapne.
ReplyDeleteसच है.............
ReplyDeleteगृह नक्षत्र मिले ....दिल ना मिले तो क्या फायदा.....
सुन्दर!!!!
जब घरों के वातावरण मिलते हैं तो विचार मिल ही जाते हैं ......बहुत सारे ..
ReplyDeleteहाँ पूरे पूरे विचार तो किसी के नहीं मिलते ....
मेरी मौसी कि सास कहतीं थीं ....''रहत रहत सब नीक लगन लगत हैं ...!"
हाँ कुछ उल्टा पुल्टा हो भी सकता है ...!आजकल की हवा का क्या भरोसा ....?
ये तो मेरे विचार हैं कविता पढाने के बाद ...
आपकी कविता बहुत सुंदर है ...सोचने पर बाध्य किया ....!!
बहुत सटीक अभिव्यक्ति....एक सारगर्भित और विचारणीय रचना...
ReplyDeleteवाह!!!!!!बहुत सुंदर सार्थक सटीक रचना,अच्छी प्रस्तुति,..
ReplyDeleteMY RECENT POST...फुहार....: दो क्षणिकाऐ,...
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
सटीक प्रस्तुति ....
ReplyDelete.
ReplyDeleteवाह !
saarthak..
ReplyDeleteBahut Sunder...Ekdam sach...
ReplyDeleteकोई मिलान नहीं
ReplyDeleteभावनाओं का,
विचारों का,
अनुभूति का,
आधारों का,
सपनों का,
एहसासों का.
...........jane kab hoga , hoga bhi yaa nahi !
कोई मिलान नहीं
ReplyDeleteभावनाओं का,
विचारों का,
अनुभूति का,
आधारों का,
सपनों का,
एहसासों का.jo ki sabse aham hai......
zindagi jeene ki hai..
ReplyDeletekatne ki nahi
hum sab ek "bhool ki chadar"...
hi to odhe hue hai
shreyaskar hai
hum sambhal jaye.
.. और रिश्ता हो जाता है असमय काल-कलवित..अति सुन्दर
ReplyDeleteमधुरेश ! बहुत सुन्दर..एकदम सही कहा सटीक और विचारणीय पोस्ट ...
ReplyDeleteकोई मिलान नहीं
ReplyDeleteभावनाओं का,
विचारों का,
अनुभूति का,
sahi nd satik bat kahi madhuresh.....
बहुत सुन्दर मधुरेश्जी .....कम शब्दों में बहुत कुछ कह डाला .....मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ.....!!!!!
ReplyDeleteपुरानी और नयी सोच में शायद यही फर्क है ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लगी पोस्ट....शानदार।
ReplyDeleteवाह ...बहुत बढिया
ReplyDeletesach kaha abhi tak koi aisa patra nahi bana jo bhaavo, anubhutiyon ka milan kar sake.
ReplyDeleteएक अभिनव विषय पर बड़ी ही विचारणीय रचना, वाह !!!!
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