बिजली का बल्ब
जगमग, स्थिर, समतापी
ढिबरी की लौ
डगमग, अस्थिर, कालिखी
बल्ब शहरी, पढ़ी लिखी,
दुल्हन नयी-नवेली,
ढिबरी पुरानी सूत डली
एक शीशी खाली
बल्ब का प्रकाश
साफ़ स्वच्छ अमीरी
ढिबरी की रौशनी
कुंठित काली ग़रीबी
बल्ब माने
सीना तान के चलना
ढिबरी माने
दुबकना भभकना
लुढकना फिसलना
क्या कहूं?
प्रारब्ध, प्रकृति या प्रवृत्ति!
या फिर
निज नियति की निवृत्ति!
क्योंकि
स्वच्छता में
कालिखी का
पता कहाँ चलता है!
और ये कि
एक बल्ब के लिए
सौ ढिबरीयों का तेल
कहीं और जलता है!
बल्ब माने ,सीना तान के चलना.... !!
ReplyDeleteढिबरी माने ,दुबकना-भभकना,लुढकना-फिसलना.... !!
प्रश्न प्रकृति का है , या प्रवृत्ति का.... ?
या फिर नियति के , निवृत्ति का.... ?
बिजली का बल्ब , और , ढिबरी की लौ का ,
तुलना बहुत अच्छा लगा.... !! प्रश्न प्रवृत्ति का ही होगा.... !!
धन्यवाद :)
Deleteमहाशिवरात्रि की शुभकामनाएं!!
सादर
अदभुद तुलना..
ReplyDeleteबल्ब माने
सीना तान के चलना
ढिबरी माने
दुबकना भभकना
लुढकना फिसलना....
क्या जो अधिक शक्तिशाली और समर्थ है वही दम्भी है???
एक बल्ब के लिए
ReplyDeleteसौ ढिबरीयों का तेल
कहीं और जलता है!... गहरा चिंतन
एकदम सटीक।
ReplyDeleteसादर
गहन चिंतन ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तुलनात्मक पोस्ट।
ReplyDeleteबहुत ही बढिया।
ReplyDeleteस्वच्छता में
ReplyDeleteकालिखी का
पता कहाँ चलता है!
और ये कि
एक बल्ब के लिए
सौ ढिबरीयों का तेल
कहीं और जलता है!
बहुत ही सुंदर गहन भव्भाव्यक्ति....
After reading your poem, I travelled back to my childhood. My mother used to read a lot of hindi literature. It's a classic poem...:)
ReplyDeleteएक बल्ब के लिए न जाने कितनी डिबरियों को जलना पडता है... सही कहा। गजब का चिंतन, दर्शन।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना।
बहुत बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteऔर ये कि
ReplyDeleteएक बल्ब के लिए
सौ ढिबरीयों का तेल
कहीं और जलता है!kya baat hai.....wah.
behad umda
ReplyDeleteआपकी कविता के हर शब्द प्रसंगानुसार आपना क्षितिज विस्तृत करते गए हैं ।.कामना है अहर्निश सृजनरत रहें । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद .
ReplyDeleteवाह,
ReplyDeleteकविता के माध्यम से आपने बहुत बड़ी बात कह दी।
bahut khoob...shabd nhi tareef ke liye
ReplyDeleteबल्ब और डीभरी के माध्यम से समाज के ऐसे वर्ग का चित्रण किया है जो सदा से ही डरता रहता है बल्ब की तीखी रौशनी से ...
ReplyDeleteगहरी सोच से उपजी रचना ...
बहुत ही उत्साहवर्धक टिपण्णी, आभार
ReplyDeleteसादर
मधुरेश
अच्छा लिखते हो भाई।
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