Monday, February 20, 2012

ढिबरी


बिजली का बल्ब
जगमग, स्थिर, समतापी
ढिबरी की लौ
डगमग, अस्थिर, कालिखी
बल्ब शहरी, पढ़ी लिखी,
दुल्हन नयी-नवेली,
ढिबरी पुरानी सूत डली  
एक शीशी खाली
बल्ब का प्रकाश
साफ़ स्वच्छ अमीरी
ढिबरी की रौशनी
कुंठित काली ग़रीबी
बल्ब माने
सीना तान के चलना
ढिबरी माने
दुबकना भभकना
लुढकना फिसलना
क्या कहूं?
प्रारब्ध, प्रकृति या प्रवृत्ति!
या फिर
निज नियति की निवृत्ति!
क्योंकि
स्वच्छता में
कालिखी का
पता कहाँ चलता है!
और ये कि
एक बल्ब के लिए
सौ ढिबरीयों का तेल
कहीं और जलता है!

20 comments:

  1. बल्ब माने ,सीना तान के चलना.... !!
    ढिबरी माने ,दुबकना-भभकना,लुढकना-फिसलना.... !!
    प्रश्न प्रकृति का है , या प्रवृत्ति का.... ?
    या फिर नियति के , निवृत्ति का.... ?
    बिजली का बल्ब , और , ढिबरी की लौ का ,
    तुलना बहुत अच्छा लगा.... !! प्रश्न प्रवृत्ति का ही होगा.... !!

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    1. धन्यवाद :)
      महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं!!
      सादर

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  2. अदभुद तुलना..

    बल्ब माने
    सीना तान के चलना
    ढिबरी माने
    दुबकना भभकना
    लुढकना फिसलना....

    क्या जो अधिक शक्तिशाली और समर्थ है वही दम्भी है???

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  3. एक बल्ब के लिए
    सौ ढिबरीयों का तेल
    कहीं और जलता है!... गहरा चिंतन

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  4. गहन चिंतन ... अच्छी प्रस्तुति

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  5. बहुत सुन्दर तुलनात्मक पोस्ट।

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  6. बहुत ही बढिया।

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  7. स्वच्छता में
    कालिखी का
    पता कहाँ चलता है!
    और ये कि
    एक बल्ब के लिए
    सौ ढिबरीयों का तेल
    कहीं और जलता है!
    बहुत ही सुंदर गहन भव्भाव्यक्ति....

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  8. After reading your poem, I travelled back to my childhood. My mother used to read a lot of hindi literature. It's a classic poem...:)

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  9. एक बल्‍ब के लिए न जाने कितनी डिबरियों को जलना पडता है... सही कहा। गजब का चिंतन, दर्शन।
    बेहतरीन रचना।

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  10. बहुत बहुत सुन्दर..

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  11. और ये कि
    एक बल्ब के लिए
    सौ ढिबरीयों का तेल
    कहीं और जलता है!kya baat hai.....wah.

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  12. आपकी कविता के हर शब्द प्रसंगानुसार आपना क्षितिज विस्तृत करते गए हैं ।.कामना है अहर्निश सृजनरत रहें । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद .

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  13. वाह,
    कविता के माध्यम से आपने बहुत बड़ी बात कह दी।

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  14. bahut khoob...shabd nhi tareef ke liye

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  15. बल्ब और डीभरी के माध्यम से समाज के ऐसे वर्ग का चित्रण किया है जो सदा से ही डरता रहता है बल्ब की तीखी रौशनी से ...
    गहरी सोच से उपजी रचना ...

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  16. बहुत ही उत्साहवर्धक टिपण्णी, आभार
    सादर
    मधुरेश

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