Wednesday, January 18, 2012

हदों तक


कभी हीरे-सा चमक उठे,
कभी धुंध में खोये रहे,
नींदों में जागते रहे,
उजालों में सोये रहे!
जब कभी मूक थे,
तो सुनते भी न थे,
अब आवाज़ मिली,
तो शोर मचाते हो!
क्यूँ तमाम बातों को 
हमेशा ही 
हदों तक खींच लाते हो!

10 comments:

  1. वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

    ReplyDelete
  2. आपके ब्लॉग पर पहली दफा आया हूँ.
    सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
    आपको पढकर अच्छा लगा.

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

    ReplyDelete
  3. क्यूँ तमाम बातों को हमेशा ही हदों तक खींच लाते हो!
    अर्थपूर्ण शब्द संजोये .... सहमत हूँ.....

    ReplyDelete
  4. बहुत उम्दा रचना है.. बधाई .....पहली बार आना हुआ यहाँ....उम्मीद है आप की रचनाये फिर यहाँ बुला लेगीं .....

    ReplyDelete
  5. संजय जी, राकेश जी, मोनिका जी, अवन्ती जी... आप सभी का आभार! ब्लौग पर आपका स्वागत है.

    ReplyDelete
  6. बहोत अच्छे ।

    बहोत अच्छा लगा आपका विचार पढकर ।

    नया हिंदी ब्लॉग

    http://hindidunia.wordpress.com/

    ReplyDelete
  7. Khilesh ji, dhayavaad! Swagat hai aapka blog par!

    ReplyDelete
  8. बहुत बढ़िया...

    ReplyDelete
  9. asa hi hta hai...balance banakar rakhna har kisi ke bas me nahi...bahut khoob

    ReplyDelete
  10. आत्मचिंतन की इस डगर पर दूर तक जाए कवि की चेतना...
    शुभकामनाएं मधुरेश!

    ReplyDelete