Sunday, December 4, 2011

तुम मेरा हाल न पूछो ...



तुम मेरा हाल न पूछो, बड़ा कमाल-सा हूँ मैं,
ज़हर के घूँट पीकर भी, शरों में ढाल-सा हूँ मैं.

सिफर तक टूट करके भी, सफ़र है बरकरार मेरा,
कि इन ख़ामोश पलों में भी, बड़ा वाचाल-सा हूँ मैं.

अजब-सी राह ये ज़िन्दगी, सिला मुझको मिला ऐसा,
कि जो भी साज़ तुम छेड़ो, उसी में ताल-सा हूँ मैं.

ज़रुरत इस अँधेरे में पड़े,  बेशक बुला लेना
कि तूफाँ में भी जो जलता है वो मशाल-सा हूँ मैं.

जो जीना है तो जी भर के जियो, बनके ज़रा 'मधुर'
कि उल्फ़त में नहीं कहते कभी 'बेहाल-सा हूँ मैं'!

Picture Courtesy: http://virin.tumblr.com/post/6380054846/strength-of-a-man-abstract-nellie-vin-by-nellie

8 comments:

  1. सुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति.

    कृपया मेरी नवीन प्रस्तुतियों पर पधारने का निमंत्रण स्वीकार करें.

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  2. madhuresh.... ye to Gulzar saab ki yaad dila di! kya khoob likha hai, ab to mujhe bhi samajh aane lagi hain ye baatein... ye hindi, ye urdu! WAH

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  3. @ SN Shukla ji: dhanyavaad! ji niyamit dekhta hun.. bahut saraahna!!
    @ Devika: khushi hui ki aapko achchi lagi :) :)

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  4. बेहतरीन ग़ज़ल......दिल से मुबारकबाद|

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  5. सिफर तक टूट करके भी, सफ़र है बरकरार मेरा,
    कि इन ख़ामोश पलों में भी, बड़ा वाचाल-सा हूँ मैं.
    lovely!!!

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  6. waah! kya baat hai

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  7. bahut hi umda ,waah! kw alawa kuch sujh hi n rha taarif me

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  8. जो जीना है तो जी भर के जियो, बनके ज़रा 'मधुर'
    कि उल्फ़त में नहीं कहते कभी 'बेहाल-सा हूँ मैं'!

    Satya Vachan :) :)
    Bot sahi, maan gaye guru :P :)

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