Tuesday, May 15, 2012

उसका बोझ भारी है...



युवा आज का
कर्मी है, साक्षी भी,
युग-परिवर्तन का.
युवा आज का
सामंजस्य है
पाश्चात्य औ' पुरातन का.

युवा आज का
करता है विरोध,
जो अतीत ने थोपे थे
उन कुरीतियों का,
कुप्रथाओं का.
दहेज का, अस्पृश्यता का.

युवा आज का
कन्धा है वो
जो मिलकर चलता है,
स्त्री का, पुरुष का.
करता है बात
समान अवसरों का,
समान अधिकारों का.

सम्बल दो उसे,
निर्बलता  न गिनाओ,
उसका बोझ भारी है,
फिर भी बढ़ रहा है आगे.
युवा आज का!


Picture Courtesy: http://gogoihimanshu.blogspot.com/2011/03/indian-youth-and-politics-of-india.html

37 comments:

  1. आपने बहुत ही बढ़िया लिखा है मधुरेश...आज के युवाओं का आत्मविश्वास मुझे बहुत प्रसंशनीय लगता है...आप लोग आगे बढ़ते रहें...हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

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  2. सम्बल दो उसे,
    निर्बलता न गिनाओ,
    उसका बोझ भारी है,
    फिर भी बढ़ रहा है आगे.
    युवा आज का!

    बहुत बढ़िया लिखा है ....आज का युवा वाकई ...जागरूक भी है और एक अलग सोच लिए भी .....खुले विचारों से अग्रसर होता हुआ .....
    इश्वर पथ प्रशस्त करें ...

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  3. सम्बल दो उसे,
    निर्बलता न गिनाओ,
    उसका बोझ भारी है,
    बिलकुल सही कहा। शुभकामनायें

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  4. अर्थपूर्ण पंक्तियाँ...सकारात्मक सोच लिए

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  5. सुन्दर प्रस्तुति |
    आभार ||

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  6. सम्बल दो उसे,
    निर्बलता न गिनाओ,
    उसका बोझ भारी है,
    फिर भी बढ़ रहा है आगे.
    युवा आज का!
    हमें पूरा विश्वास है , कदम डगमगा भी नहीं सकते ....
    बोझ चाहे जितना भारी हो ,इरादे बहुत मजबूत है ....

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  7. आज का युवा दृढ़ निश्चयी है.........
    जितने भी गिनाओ निर्बलता......
    वो आगे आगे ही चलता...........

    जाती पीढ़ी का संबल होती है आती पीढ़ी.........

    शुभकामनाएँ मधुरेश.

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  8. युवाओं के कंधों पर ही परिवर्तन की नींव राखी है ...सुंदर प्रस्तुति करण

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  9. बहुत सुन्दर लिखा है मधुरेशजी आपने... आत्मविश्वास से परिपूर्ण भाव ... शुभकामनायें

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  10. सम्बल दो उसे,
    निर्बलता न गिनाओ,
    उसका बोझ भारी है,
    फिर भी बढ़ रहा है आगे.
    युवा आज का!

    एक बार फिर बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति

    WELCOME TO MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,

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  11. सम्बल दो उसे,
    निर्बलता न गिनाओ,
    उसका बोझ भारी है,
    फिर भी बढ़ रहा है आगे.
    युवा आज का!

    .....बिलकुल सच...आज के युवा के कन्धों पर ही कल का भार है...

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  12. निर्बलता न गिनाओ,
    उसका बोझ भारी है,
    फिर भी बढ़ रहा है आगे.
    युवा आज का!

    bahut hi badiya yar,kamal ka likhte ho

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  13. आखिर असली जरुरतमंद कौन है
    भगवन जो खा नही सकते या वो जिनके पास खाने को नही है
    एक नज़र हमारे ब्लॉग पर भी
    http://blondmedia.blogspot.in/2012/05/blog-post_16.html

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  14. सकारात्मक सोच लिए भाव पूर्ण अभिव्यक्ति..

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  15. वाह ...बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति ... शुभकामनाएं मधुरेश आपको

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  16. अत्यंत सुन्दर अभिव्यक्ति है.

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  17. बात तो आपकी सही है मगर यह दुनिया है ही ऐसी क्या कीजिये कर्म कोई नहीं देखता सब नतीजा ही देखा करते हैं क्यूंकि लोगों को तारीफ करने से ज्यादा आसान लगता है दोष निकालना सुंदर सार्थक भावपूर्ण अभिव्यक्ति....

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  18. Bilkul sahi h yuva aj ka...great post madhuresh.... :)

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  19. Very profound and depicts well the state of youth. Sorry, I did't get the meaning of 'पाश्चात्य औ'

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    1. Thanks Saru :)
      पाश्चात्य औ' पुरातन is basically to contrast the Western thinking and our Oriental thinking... Knowing that development and modernization are important, it is subtly important to integrate and balance it with the cultural values that we have.

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    2. Oh, thats a beautiful and meaningful phrase. I must read you more often. Thanks for this...:)

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  20. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 17 -05-2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में ....ज़िंदगी मासूम ही सही .

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  21. आज के युवा को समझना बहुत ज़रूरी है, और उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है कि उसके द्वारा ही उसे समझना चाहिए। सिर्फ़ बाहर से उसकी आलोचना कर देते हैं आज लोग।
    इस प्रतियोगिता और जद्दो-जहद वाले युग में युवा सतत संघर्षशील है। आवश्यकता है उसके संघर्ष को समर्थन, विश्वास और हौसला आफ़ज़ाई की।

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  22. बहुत सही।


    सादर

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  23. सहमत...युवाओं से बहुत कुछ सीखा जा सकता है.एक सकारात्मक अभिव्यक्ति.

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  24. सम्बल दो उसे,
    निर्बलता न गिनाओ,
    यही मूल मंत्र है।
    सुंदर रचना... हार्दिक बधाई।

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  25. मधुरेश जी,
    पूर्व में हुई चर्चा के अनुसार आपके ब्लॉग से कुछ लेख को अपने दैनिक समचार पत्र भास्कर भूमि में प्रकाशित किया है। अखबार की प्रतियां आप तक भेजना चाहते है। आप अपने घर का पता भेजने की कृपा करे.......bhaskar.bhumi.rjn@gmail.com
    भास्कर भूमि का ई पेपर देखें......www.bhaskarbhumi.com

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  26. युवा आज का
    करता है विरोध,
    जो अतीत ने थोपे थे
    उन कुरीतियों का,
    कुप्रथाओं का.
    दहेज का, अस्पृश्यता का.

    युवा आज का
    कन्धा है वो
    जो मिलकर चलता है,
    स्त्री का, पुरुष का.
    करता है बात
    समान अवसरों का,
    समान अधिकारों का.......सही बात को सुन्दर तरीके से कहा,आपने.

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  27. thats a tough one :)

    took me a lot of concentration to read this poem.

    profound

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  28. बहुत सुन्दर प्रस्‍तुति। मेरी कामना है कि आप अहर्निश सृजनरत रहें । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  29. बहुत बढ़िया रचना .....

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  30. बहुत सुन्दर मधुरेश भाई.....उसका बोझ भारी है फ़िर भी वो चल रहा है..
    ये महान दृश्य है
    चल रहा मनुष्य है
    स्वेद, अश्रु,रक्त से लतपथ,लतपथ
    अग्निपथ , अग्निपथ, अग्निपथ

    आपकी रचना पढ़ के Robert Bridges की कविता याद आ गयी

    o youth! whose hope is high
    who dost to truth aspire
    either thou live or die
    o look not back nor tire

    ऐसे ही लिखते रहें आप ....बहुत सुन्दर

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  31. बहुत ही बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग

    विचार बोध
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  32. Beautiful poem....and I do agree that today's generation is more patriotic and religious.....and yes..active like u and me :P

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