The serene calmness and quietness of a candle (diya) gets more and established only with time!
और ये भी पता न था
कि माँगना क्या है!
अब समझ है इतनी
कि चाहिए क्या मुझे,
और जानता हूँ ये भी
कि माँगना क्या है!
फिर भी नहीं मांगता!
क्यूंकि मन में तुमने
विश्वास जो भर दिया है,
कि भला माँगना क्या है!
शायद यही परिपक्वता है!
===================================
I used to ask for everything
like an unyielding child
without even knowing
what is that I actually need!
With time, we grow and realize
what should we actually ask for.
Now I know what is that
I really really need.
But I won't even ask you
to give me what I want!
For, you've bestowed me such a faith
that I can get it, whatever I want.
Perhaps this is what maturity is!
===============================
Picture Courtesy: Santanu Sinha
तब ज़िद्दी बच्चों-सा
मांगता रहा तुमसेऔर ये भी पता न था
कि माँगना क्या है!
अब समझ है इतनी
कि चाहिए क्या मुझे,
और जानता हूँ ये भी
कि माँगना क्या है!
फिर भी नहीं मांगता!
क्यूंकि मन में तुमने
विश्वास जो भर दिया है,
कि भला माँगना क्या है!
शायद यही परिपक्वता है!
===================================
I used to ask for everything
like an unyielding child
without even knowing
what is that I actually need!
With time, we grow and realize
what should we actually ask for.
Now I know what is that
I really really need.
But I won't even ask you
to give me what I want!
For, you've bestowed me such a faith
that I can get it, whatever I want.
Perhaps this is what maturity is!
===============================
Picture Courtesy: Santanu Sinha
फिर भी नहीं मांगता!
ReplyDeleteक्यूंकि मन में तुमने
विश्वास जो भर दिया है,
कि भला माँगना क्या है!
शायद यही परिपक्वता है!
वाह ! हाँ .... आपकी सोच पूरी तरह से परिपक्व हो चुकी है ....
:)
अरे नहीं विभा मौसी, अभी भी बच्चों-सी ज़िद करते हैं.. इसीलिए ये आत्म-मंथन...खुद को समझाना चाहते हैं कि अब ये ज़िद छोड़ देनी चाहिए :)
Deleteआभार
आशीष छोटू .... !!परिपक्वता का अर्थ यह नहीं , कि अपने से बड़ो के सामने बचपना नहीं दिखलाया जाए .... !!
Delete:) :)
Deleteमन मे है विश्वास ...पूरा है विश्वास ...
ReplyDeleteहम होंगे कामियाब एक दिन ....!!
अब इस विश्वास के आगे और क्या मांगना है ......?
सुंदेर प्रस्तुति ....
शुभकामनायें.....!!!!
कितना भी परिपक्व हो जाये दिमाग.......
ReplyDeleteमन कभी मांगना नहीं छोड़ता.....
भीतर का बच्चा कभी बड़ा नहीं होता...
और कोई है कहीं...जो अवश्य देता है हमें मांगने पर.......
सस्नेह
यही परिपक्वता कई अर्थ देती है
ReplyDeleteजीवन के मायने जब पूरी तरह से समझ में आ जाए तभी पूरी तरह परिपक्वता समझ में आती है!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
बिन मागें मोती मिले....परिपक्वता आने पर ये बात समझ आजाती है...
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब .. रचना के भाव मन को छूते हुए ..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सटीक विवेचना
ReplyDeleteचन्द शब्दों मे मुक़म्मल बयान शायद इसी को कहते हैं
अच्छी रचना .... बधाई ...दोनों के लिए ....!
ReplyDeleteumr ke sath bhi aati hai aur waqt bhi lata hai......nice post.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर
बहुत खुबसूरत.....
ReplyDeleteएक परिपक्व सोच से जन्मी एक परिपक्व कविता ...... बहुत सुन्दर विचार हैं मधुरेश .
ReplyDeleteBahut Sunder Vichar.....
ReplyDeleteहाँ ! यही परिपक्वता है....
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