जो ऊपर की ओर जाती हैं,
वही सीढियां नीचे भी आती हैं.
और सीढियां चढ़ने-उतरने की
कई विधाएं भी पायी जाती हैं!
कुछ लोग एक-एक कदम बढ़ाते हैं,
कुछ लोग बस फांदते ही जाते हैं.
और कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो
हर सीढ़ी पर दोनों कदम जमाते हैं.
और वैसे ही उतरना भी कला है.
धीरे-धीरे उतरना बेहतर होता है,
क्यूंकि जल्दी-जल्दी उतरने में
लड़खड़ाने का ख़तरा ज्यादा होता है.
बात तो बस रिस्क की है,
कौन कितना उठा पाता है.
जो जितना रिस्क उठाता है
वो उतना ही बढ़ता जाता है.
लेकिन चढ़ने और उतरने के क्रम में
एक विशेष अंतर होता है,
कि कूदकर उतरना तो आसान होता है
मगर उछलकर चढ़ पाना-
ज़रा मुश्किल होता है !
Picture Courtesy: http://wellness-nexus.blogspot.com/2012/03/climb-steers-of-success.html
अच्छा चिंतन किया ...!!
ReplyDeleteसुंदेर भावों मे पिरोये मन के भाव ...!!समझ मे आ रहा है आप सीढ़ी चढ़ना जानते है ...!!:)
शुभकामनायें मधुरेश ...!!
सीढ़ी चढ़ना भी एक कला है...
ReplyDeleteरिस्क लेना अच्छी बात है...
कदम जमाकर चलना उससे भी अच्छी बात है...
गहन विचारों को प्रेषित करती रचना बहुत पसंद आई !
Mast!!
ReplyDeleteलेकिन चढ़ने और उतरने के क्रम में
ReplyDeleteएक विशेष अंतर होता है,
कि कूदकर उतरना तो आसान होता है
मगर उछलकर चढ़ पाना-
ज़रा मुश्किल होता है !
एक पल कहते हो परिपक्वता के तलाश में हो ....
अगले पल अपने कहे को ही कसौटी पर डाल देते हो ....
और मेरी उलझन और उलझन में पड़ जाती है ....
लेकिन चढ़ने और उतरने के क्रम में
ReplyDeleteएक विशेष अंतर होता है,
कि कूदकर उतरना तो आसान होता है
मगर उछलकर चढ़ पाना-
ज़रा मुश्किल होता है !... कहाँ उतरना है कूदकर , कहाँ आहिस्ते कहाँ चढ़ना है पलक झपकते ..... यह सीधी सांप सीढ़ी सा ही होता है
कूदकर उतरना तो आसान होता है
ReplyDeleteमगर उछलकर चढ़ पाना-
ज़रा मुश्किल होता है !
.....सुन्दर अभिव्यक्ति
growth is often bit by bit whereas the process of decline is much more rapid
exquisite manifestation madhuresh bhai
लेकिन चढ़ने और उतरने के क्रम में
ReplyDeleteएक विशेष अंतर होता है,
कि कूदकर उतरना तो आसान होता है
मगर उछलकर चढ़ पाना-
ज़रा मुश्किल होता है
बहुत सुंदर अपने भावों की प्रस्तुति,,,,,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
बात तो बस रिस्क की है,
ReplyDeleteकौन कितना उठा पाता है.
जो जितना रिस्क उठाता है
वो उतना ही बढ़ता जाता है.
सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट कबीर पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeletebahut hi badhia poem
ReplyDeletethanks
http://drivingwithpen.blogspot.in/
बहुत ही अच्छा तालमेल शब्दों में चढ़ने और
ReplyDeleteउतरने के क्रम का ... बेहतरीन
चढ़ने उतरने की कला कों बखूबी बाँधा है .. जीवन भी ऐसे ही ऊपर चढा जाए तो सफल रहता है ...
ReplyDeleteकोई चढ़ जाता है तो कोई उतर जाता है
ReplyDeleteअच्छी तरह अंतर समझा दिया है .. बहुत अच्छी लगी..वाह!
ReplyDeleteआभार विभा मौसी और यशवंत भाई! :)
ReplyDeleteलेकिन चढ़ने और उतरने के क्रम में
ReplyDeleteएक विशेष अंतर होता है,
कि कूदकर उतरना तो आसान होता है
मगर उछलकर चढ़ पाना-
ज़रा मुश्किल होता है !
bahut hi gahri abhivyakti !
क्या बात कही है मधुरेश जी... सच में यह एक कला है...आगे बढती सीढियों के उंचाई और चौड़ाई का सही अनुपात लगाकर सही सीढ़ी पर कदम रखना वाकई मुश्किल होता है...मुझे तो वाकई में अब भी सीढ़ी पे उतरने और चढ़ने में कठिनाई होती है...जिंदगी की सीढ़ी तो पता नहीं कैसे चढ़ी जा रही हूँ या उतरी जा रही हूँ...बहुत हीं सुन्दर रचना....:)
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी बात कही है....
ReplyDeleteसीडिया चड़ने और उतरने में धैर्य बनाये रखना है..
पैर जमाये रखना है..
बेहतरीन रचना...
बहुत सहजता से एक गूढ़ बात कह दी ......KUDOS!!!!
ReplyDeleteसीढि़यां चढ़ने से आपकी जिंदगी स्वस्थ रहती है और आप कुछ और अच्छे दिन अपनी लाइफ में जोड़ सकते है। इससे कई प्रकार के हेल्थ़ रिस्कग भी कम हो जाते है। https://goo.gl/6Np8cq
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