Sunday, October 30, 2011

अतीत से द्वंद्व




वो जो मुझमे था,
ख़ुद ही खोया पड़ा है!
शायद वो भी ख़ुद को,
कहीं और ढूंढ रहा है!
और तुम क्या तुम ही हो?
कल कुछ और ही थे,
आज कुछ और ही हो.
कल का पता,
ना तुम्हे है, ना हमें.
वक़्त के साथ सम्यक
ना तुम हो, ना हम हैं.
जब खूब पहचान थी तुम्हे,
तो आज भरोसा क्यूँ कम है!
तुम बदले, इसका तो नहीं,
हाँ मैं बदला, इसका ग़म है!
इसीलिए ढूंढ रहा हूँ ख़ुद को,
कि वक़्त फिर मुझे ना बदले.
मैं होऊं तो शाश्वत होऊं,
वरना जीवन निरर्थक है!

2 comments:

  1. hamesha ki tarah, bahut hi sundar. Dil ko chhu gayi ye baat.

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  2. बहुत खूबसूरत , बधाई.



    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.

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