Sunday, November 13, 2011

प्रकृति की वेदना


Our mother nature is continuously being exploited without any rationale. This selfish attitude of human being has drastic repercussions on themselves. If we don't get out of this darkness, nature will have her own way out. Spread the message: 'Save Earth!!'

तुम कहते मैं अभिमानी,
करती नित अपनी मनमानी.
क्या लाज शेष रख करती भी,
जब हर क्षण में मैं मरती हूँ?

हाँ तुमने मुझको धिक्कारा,
निज स्वार्थ तमस घेरा डाला,
इस अन्धकार की अग्नि में
कर धधक-धधक मैं जलती हूँ.

लेकिन मुझे न पश्चाताप,
और न कोई ही संताप,
क्यूँकी हर मृत्यु के बाद प्रिये
इक प्राण नवल मैं धरती हूँ!

हाँ, हर क्षण में मैं मरती हूँ!

Picture Courtesy: scienceray.com

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