Sunday, November 20, 2011

Entropy-ism 2


संकीर्णता
विवेक की,
विस्तार ढूँढती है!

साधना के
अनुपम सोपान से,
साकार ढूँढती है!

जो निश्चित है,
निरंतर है,
हर बार ढूँढती है!

इक ललित लय में
विलय का
आधार ढूंढती है! 

संकीर्णता ही तो है जो,
विस्तार ढूँढती है!


Picture: Thosegarh Plateau, Satara, Maharashtra, India 

1 comment:

  1. इक ललित लय में
    विलय का
    आधार ढूंढती है!
    बहुत उत्तम पंक्तियाँ हैं...
    हमें हमेशा याद रहेगी!

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