We meditate...to seize the mind from outwards....although it is against the natural flow, against the entropy...yet we do..!!
सरिता का सागर में मिलना,
कलियों का फूल में खिलना,
और ओस की नन्ही बूंदों का पत्तियों से लुढ़कना-फिसलना,
अविराम है, अगणित भी
स्वतः स्फूर्त है, स्वतः शील भी
प्रायोजित है, नियोजित भी.
कितना संभव है संभलना?
नियति के निश्चित-अनिश्चित पे
कैसा विलाप और कैसा मंथन?
बंधन प्रेम है या कि प्रेम बंधन?
Picture Courtesy: kealwallpapers.com
नियति के निश्चित-अनिश्चित पे
ReplyDeleteकैसा विलाप और कैसा मंथन?
आखिर इस (अ)सीमित मन का
बंधन प्रेम है या कि प्रेम बंधन?
सार समाया है इस एक प्रश्न में!
इस लय को बनाये रखियेगा सदा ही शाश्वत...