Sunday, October 23, 2011

है निशा अब जाने को


है निशा अब जाने को,
क्षितिज पर आभा बिखर रही,
कंचन किरणों से कली-कली
पुष्पित होती औ' निखर रही.

वंदन चंदन अभिनंदन की
बेला सुमधुर सुर-साज भरी,
अरुणाभ अमित उज्ज्वलता से
पल्लव होती, हो प्रखर रही.

अनुराग निहित स्पंदन सा 
शीतल सरिता का सलिल लगे,
निर्बाध प्रवाह की अभिलाषा
अंतर नित प्रेरित कर रही.

है निशा अब जाने को,
क्षितिज पर आभा बिखर रही.

Picture Courtesy: Sachit
Place: Lonar Crater, Lonar, India

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