नदियों का प्रेम समर्पण का,
उनका तो प्रेम प्रवाह है बस।
आग़ोश में लेता जाता फिर भी,
सागर की है कुछ कशमकश!
अथाह प्रेम समर्पण का
नदियाँ अपने संग लाती हैं,
पर पत्थर राहों में घिसकर
थोड़ी नमक भी घोल आती हैं।
ये चुटकी भर नमक नहीं
नदियों का मीठापन हरता है,
लेकिन यूँही बूँद-बूँद कर
सागर को खारा करता है।
और जब नदियाँ बादल बनकर
उड़ जाती सागर के ऊपर,
तो फिर बचता सागर में बस
उनका त्यागा नमक चुटकीभर!
सदियों के इस सिलसिले में
सागर खारा होता जाता है,
फिर भी प्रेम कहो कितना जो,
नदियों को फिर भी भाता है!
Inspired by बावली नदी
Dedicated to dear Anu di :)
Picture Courtesy: http://www.nwfsc.noaa.gov/research/divisions/fed/oceanecology.cfm
और जब नदियाँ बादल बनकर
ReplyDeleteउड़ जाती सागर के ऊपर,
तो फिर बचता सागर में बस
उनका त्यागा नमक चुटकीभर!
सूक्ष्म और सटीक दृष्टि से आपने इसे देखा है. सुन्दर काव्य मधुरेश भाई.
बहुत सुन्दर मधुरेश....
ReplyDeleteमूल से सूद प्यारा.............
शुक्रिया
सस्नेह
अनु
सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति.......
Both of you and anu di leave me speechless sometimes...
ReplyDeleteसदियों के इस सिलसिले में
ReplyDeleteसागर खारा होता जाता है,
फिर भी प्रेम कहो कितना जो,
नदियों को फिर भी भाता है!
वाह ... बहुत ही बढिया
ये चुटकी भर नमक नहीं
ReplyDeleteनदियों का मीठापन हरता है,
लेकिन यूँही बूँद-बूँद कर
सागर को खारा करता है।
बहुत खूबसूरत कविता है भाई!
लाजवाब !
बहुत सुन्दर लगी पोस्ट।
ReplyDeleteसुंदर जज़्बात ....!!
ReplyDeleteसुंदर रचना ...!!
Dedicated to dear Anu di :)
ReplyDeleteउम्मीद है दी को पसंद आई होगी ....!!
नदियों का प्रेम समर्पण ........बहुत सुंदर जज़्बात...
ReplyDeleteyeh to pura concept hi badal gaya ....:)
ReplyDeleteगहन अर्थ लिए बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
गहराई है आपकी कविता में
ReplyDeleteक्या कमाल का पकड़ा हैं आपने इस अपार प्रेम को .. और उतनी ही खूबसूरती से काव्य रचना भी की हैं।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा। :))
आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा ..अगर आपको भी अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़े।
आभार!!
खुबसुरत एहसास समेटे सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है..बस एक प्रवाह..बहा जा रहा है कुछ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति .आभार
ReplyDeleteसदियों के इस सिलसिले में
ReplyDeleteसागर खारा होता जाता है,
फिर भी प्रेम कहो कितना जो,
नदियों को फिर भी भाता है ..
प्रेम का ऐसा चक्र चलता ही रहता है ... सुन्दर प्रवाहमय रचना ...
सदियों के इस सिलसिले में
ReplyDeleteसागर खारा होता जाता है,
फिर भी प्रेम कहो कितना जो,
नदियों को फिर भी भाता है!
प्रिय मधुरेश जी गहन अभिव्यक्ति , जीवन वृत्तांत युक्त सुन्दर सन्देश देती रचना .....गजब के जज्बात ....प्रेम उमड़ता रहना चाहिए
जय श्री राधे
भ्रमर 5
आपका यह पोस्ट अच्छा लगा। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।
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