Monday, November 12, 2012

क्या ही रौशनी बख्शी है !



तेरी हर वो आहट
जो मुझे उतरन-सी लगी,
तूने मुझे उसमे
ऊँचाई ही बख्शी है !

ये कैसा दरिया है
कि जहाँ डूबा,
वहीं पार भी हुआ,
क्या ही ज़िन्दगी बख्शी है !

कभी तो ऐसा था 
कि सब्रो-करार न था,
अब इन थमी साँसों में भी
बन्दगी ही बख्शी है !

इक अँधेरा ही तो था,
ये जो उजाला है अभी,
दीप जो मन का जला है,
क्या ही रौशनी बख्शी है !

15 comments:

  1. तेरी हर वो आहट
    जो मुझे उतरन-सी लगी,
    तूने मुझे उसमे
    ऊँचाई ही बक्शी है !

    Bahut sundar:-)

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  2. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति,,,
    दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ,,,,
    RECENT POST: दीपों का यह पर्व,,,

    म्यूजिकल ग्रीटिंग देखने के लिए कलिक करें,

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  3. बेहद खूबसूरत लिखा है आपने।
    दीपोत्सव की हार्दिक शुभ कामनाएँ!


    सादर

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  4. मन के सुन्दर दीप जलाओ******प्रेम रस मे भीग भीग जाओ******हर चेहरे पर नूर खिलाओ******किसी की मासूमियत बचाओ******प्रेम की इक अलख जगाओ******बस यूँ सब दीवाली मनाओ

    दीप पर्व की आपको व आपके परिवार को ढेरों शुभकामनायें

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  5. खूबसूरत रचना!
    दीपावली की शुभकामनाएँ!!

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  6. सुन्दर रचना...
    आपको सहपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ...
    :-)

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  7. दीप जो मन का जला है,
    क्या ही रौशनी बख्शी है !
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...

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  8. बढि़या है भाई! इसी तरह लिखते रहें , मेरी शुभकामनाएँ।

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  9. बहुत सुंदर ... बहुत शुभकामनायें..

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  10. मन का उजाला ही व्यक्तित्व है .... होड़ से परे प्राप्य

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  11. कभी तो ऐसा था
    कि सब्रो-करार न था,
    अब इन थमी साँसों में भी
    बन्दगी ही बख्शी है !

    यही वक़्त है ....इक ही चीज को देखने का नजरिया बदला जाता है.
    वाकई मंथन से भाव निकले हैं मधुरेश भाई. सुन्दर कृति के लिए बधाई.

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  12. वाह ... बहुत ही बढिया।

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  13. कभी तो ऐसा था
    कि सब्रो-करार न था,
    अब इन थमी साँसों में भी
    बन्दगी ही बख्शी है !

    बहुत खुबसूरत ।

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