तेरी हर वो आहट
जो मुझे उतरन-सी लगी,
तूने मुझे उसमे
ऊँचाई ही बख्शी है !
ये कैसा दरिया है
कि जहाँ डूबा,
वहीं पार भी हुआ,
क्या ही ज़िन्दगी बख्शी है !
कभी तो ऐसा था
कि सब्रो-करार न था,
अब इन थमी साँसों में भी
बन्दगी ही बख्शी है !
इक अँधेरा ही तो था,
ये जो उजाला है अभी,
दीप जो मन का जला है,
क्या ही रौशनी बख्शी है !
तेरी हर वो आहट
ReplyDeleteजो मुझे उतरन-सी लगी,
तूने मुझे उसमे
ऊँचाई ही बक्शी है !
Bahut sundar:-)
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteदीपावली की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ,,,,
RECENT POST: दीपों का यह पर्व,,,
म्यूजिकल ग्रीटिंग देखने के लिए कलिक करें,
बेहद खूबसूरत लिखा है आपने।
ReplyDeleteदीपोत्सव की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
सादर
Dipawali ki shubhkamnayen
ReplyDeletewww.kpk-vichar.blogspotin
मन के सुन्दर दीप जलाओ******प्रेम रस मे भीग भीग जाओ******हर चेहरे पर नूर खिलाओ******किसी की मासूमियत बचाओ******प्रेम की इक अलख जगाओ******बस यूँ सब दीवाली मनाओ
ReplyDeleteदीप पर्व की आपको व आपके परिवार को ढेरों शुभकामनायें
खूबसूरत रचना!
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनाएँ!!
सुन्दर रचना...
ReplyDeleteआपको सहपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ...
:-)
दीप जो मन का जला है,
ReplyDeleteक्या ही रौशनी बख्शी है !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteबढि़या है भाई! इसी तरह लिखते रहें , मेरी शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ... बहुत शुभकामनायें..
ReplyDeleteमन का उजाला ही व्यक्तित्व है .... होड़ से परे प्राप्य
ReplyDeleteकभी तो ऐसा था
ReplyDeleteकि सब्रो-करार न था,
अब इन थमी साँसों में भी
बन्दगी ही बख्शी है !
यही वक़्त है ....इक ही चीज को देखने का नजरिया बदला जाता है.
वाकई मंथन से भाव निकले हैं मधुरेश भाई. सुन्दर कृति के लिए बधाई.
वाह ... बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteकभी तो ऐसा था
ReplyDeleteकि सब्रो-करार न था,
अब इन थमी साँसों में भी
बन्दगी ही बख्शी है !
बहुत खुबसूरत ।