Wednesday, June 20, 2012

वनवास ३: तुम तो हो




जब एकांत में प्रशांति न हो,
और चित्त में विश्रांति न हो,
जब सपन-सलोने नयनों में
कौतूहल हो और कान्ति न हो,

जब ठिठके मुझसे मेरी छाया
यूँ जैसे कि पहचानती न हो
जब रूठे मुझसे मेरी तन्हाई,
मैं लाख मनाऊँ, वो मानती न हो,

तुम धीरे से पास बुलाना मुझे,
ख़ुद का एहसास दिलाना मुझे,
ताकि ये लगे कि तुम तो हो,
तुम्हारे न होने की भ्रान्ति न हो.



Picture Courtesy: Santanu Sinha

23 comments:

  1. मन का उद्वेलन प्रकट करती ....बहुत सुंदर कविता ...
    शुभकामनायें.

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  2. क्योंकि ओ शब्द - तुम आधार हो
    संजीवनी शक्ति हो
    खुद को खुद में पाने का आदि और अंत हो

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  3. वाह ... बहुत बढिया।

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  4. उसके न होने की कोई वजह ही नहीं.....
    जब स्थितियां विपरीत हों तो उसका ही आसरा है....

    बहुत सुन्दर मधुरेश.

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  5. वाह: भावो की बहुत सुन्दर प्रस्तुति... मधुरेश...बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  6. तुम्हारे न होने की भ्रान्ति न हो.
    वाह!

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  7. बहुत ही सुन्दर भावो से सजी ये पोस्ट लाजवाब है।

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  8. क्या कहने...
    बहुत ही सुन्दर रचना है मधुरेश जी
    बहुत ही सुन्दर रचना...

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  9. बेहतरीन शाब्दिक संयोजन ..... अति सुंदर

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  10. आभार यशवंत भाई !
    सादर

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  11. जब उसका अहसास हो तो कैसी भ्रान्ति ..सुन्दर शब्द सृजन..

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  12. भ्रांतियां भी कभी कभी शांति दे जाती है
    सुन्दर रचना

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  13. उसके होने के एहसास में कोई भ्रांति नहीं...बहुत खूबसूरत रचना !!

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  14. बहुत सुन्दर भावमयी रचना...

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  15. "तुम धीरे से पास बुलाना मुझे,
    ख़ुद का एहसास दिलाना मुझे,
    ताकि ये लगे कि तुम तो हो,
    तुम्हारे न होने की भ्रान्ति न हो."
    ....मनमोहक रचना

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  16. तुम धीरे से पास बुलाना मुझे,
    ख़ुद का एहसास दिलाना मुझे,
    ताकि ये लगे कि तुम तो हो,
    तुम्हारे न होने की भ्रान्ति न हो.

    सुंदर भावों से सजी आपकी प्रस्तुति काफी अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट अतीत से वर्तमान तक का सफर पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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  17. बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन, बधाई.

    कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारें , अपनी प्रतिक्रिया दें , आभारी होऊंगा .

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