वनवास कठिन होता है.
और होता है कुछ ज़्यादा ही
जब स्वनिर्णित होता है.
क्योंकि किसी ने कहा अगर
वनवास पे जाने को,
तो तुम चले भी जाओगे.
धर्म की, कर्त्तव्य की
मजबूरियों पर
तोहमत लगाओगे.
लेकिन जब
बिना किसी आग्रह
स्वयं ही जाना हो,
तो मन में कैकेयी, मंथरा
या फिर कौरव, शकुनी
कहाँ से लाओगे?
किसी ने बाँध दी
सीमायें अगर
तो चुप रह जाना भी
सहज होता है.
जो स्वयं को स्वयं ही
बांधना पड़े,
तो वो असीम बल,
वो आत्म-विश्वास
कहाँ से लाओगे?
वनवास कठिन होता है.
और होता है कुछ ज़्यादा ही
जब स्वनिर्णित होता है.
Picture Courtesy: 'Embrace' by Sutapa Roy
हमको मन की शक्ति देना ...मन विजय करे ...दूसरों की जय से पहले खुद को जय करें ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है ...मन पर जब इस तरह काबू पा लें तो राह स्पष्ट दिखाती है ....सारी धुंध छंट जाती है ....!!
बहुत सुन्दर रचना .....
शुभकामनायें ...
जो स्वयं को स्वयं ही
ReplyDeleteबांधना पड़े,
तो वो असीम बल,
वो आत्म-विश्वास
कहाँ से लाओगे?
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वनवास कठिन होता है.
और होता है कुछ ज़्यादा ही
जब स्वनिर्णित होता है.
अर्थपूर्ण....सशक्त अभिव्यक्ति
स्वयं से जूझना सबसे कठिन है....
तो वो असीम बल,
ReplyDeleteवो आत्म-विश्वास
कहाँ से लाओगे?
जब स्वनिर्णित होता है
तब स्व प्रबल होता है ....
बहुतायत में चिंता क्यों होता है ....
स्वयं पर संयम लगाना सच ही कठिन होता है .... सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजब
ReplyDeleteबिना किसी आग्रह
स्वयं ही जाना हो,
तो मन में कैकेयी, मंथरा
या फिर कौरव, शकुनी
कहाँ से लाओगे?...स्व निर्णय का वनवास खुद का ही आकलन करता है और आयाम ढूंढता है
किसी ने बाँध दी
ReplyDeleteसीमायें अगर
तो चुप रह जाना भी
सहज होता है.
जो स्वयं को स्वयं ही
बांधना पड़े,
तो वो असीम बल,
वो आत्म-विश्वास
कहाँ से लाओगे?....बहुत सुन्दर और गहन भाव
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी ....भावों को बहुत गहराई से लिखा है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर व सत्य बात कही है है मधुरेश... सही में स्वयम को बंधन में बांधना बहुत कठिन होता है... सार्थक व भावपूर्ण रचना!
ReplyDeleteजब
ReplyDeleteबिना किसी आग्रह
स्वयं ही जाना हो,
तो मन में कैकेयी, मंथरा
या फिर कौरव, शकुनी
कहाँ से लाओगे?.
स्वनिर्मित वनवास में आत्मसंयम ही अहम् होता है...सुंदर रचना !!
वनवास कठिन होता है.
ReplyDeleteऔर होता है कुछ ज़्यादा ही
जब स्वनिर्णित होता है.
सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
बहूत हि बेहतरीन है मन पर संयम हो जाये तो
ReplyDeleteबात हि क्या....
बहूत हि सुंदर और गहन भावाभिव्यक्ती....
कल 10/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
मैरा कमेन्ट कहाँ गया??
ReplyDeletespam मे ढूँढिए please...
बहुत ही गहरे भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteवनवास कठिन होता है.
ReplyDeleteऔर होता है कुछ ज़्यादा ही
जब स्वनिर्णित होता है.
......क्योंकि तब.. दोषारोपण की दुनाली रखने के लिए कोई कन्धा मयस्सर नहीं होता .....अपने निर्णय का बोझ खुद ही ढोना होता है ....
बेहतरीन प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteTrue, when things are forced on you by duty, then it is easier but when you have to take an initiative on your own, many emotional and moral complications come. Very profound.
ReplyDeleteवनवास कठिन होता है.
ReplyDeleteऔर होता है कुछ ज़्यादा ही
जब स्वनिर्णित होता है........
उत्तम....अति उत्तम
सादर
किसी ने बाँध दी
ReplyDeleteसीमायें अगर
तो चुप रह जाना भी
सहज होता है.
जो स्वयं को स्वयं ही
बांधना पड़े,
तो वो असीम बल,
वो आत्म-विश्वास
कहाँ से लाओगे?
सुंदर अभिव्यक्ति.
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteसुन्दर सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बड़ी बात कह दी मधुरेश...
ReplyDeleteजब स्वनिर्णित होता है,तब और कठिन होता है वनवास...........
आत्मन्थन किया जाए................
वनवास कठिन होता है.
ReplyDeleteऔर होता है कुछ ज़्यादा ही
जब स्वनिर्णित होता है.
बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट सच है स्वयं को बंधना बहुत कठिन है ।
sunder peyaas hai Madhuresh ji ....
ReplyDeleteस्वनिर्णय में कठिनाई नहीं होनी चाहिए ...
ReplyDeleteआभार सुंदर रचना के लिए !
अप्रतीम लेखन!
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