जब एकांत में प्रशांति न हो,
और चित्त में विश्रांति न हो,
जब सपन-सलोने नयनों में
कौतूहल हो और कान्ति न हो,
जब ठिठके मुझसे मेरी छाया
यूँ जैसे कि पहचानती न हो
जब रूठे मुझसे मेरी तन्हाई,
मैं लाख मनाऊँ, वो मानती न हो,
तुम धीरे से पास बुलाना मुझे,
ख़ुद का एहसास दिलाना मुझे,
ताकि ये लगे कि तुम तो हो,
तुम्हारे न होने की भ्रान्ति न हो.
Picture Courtesy: Santanu Sinha
मन का उद्वेलन प्रकट करती ....बहुत सुंदर कविता ...
ReplyDeleteशुभकामनायें.
क्योंकि ओ शब्द - तुम आधार हो
ReplyDeleteसंजीवनी शक्ति हो
खुद को खुद में पाने का आदि और अंत हो
वाह ... बहुत बढिया।
ReplyDeleteउसके न होने की कोई वजह ही नहीं.....
ReplyDeleteजब स्थितियां विपरीत हों तो उसका ही आसरा है....
बहुत सुन्दर मधुरेश.
वाह: भावो की बहुत सुन्दर प्रस्तुति... मधुरेश...बहुत बहुत शुभकामनाएं
ReplyDeleteतुम्हारे न होने की भ्रान्ति न हो.
ReplyDeleteवाह!
बहुत ही सुन्दर भावो से सजी ये पोस्ट लाजवाब है।
ReplyDeleteक्या कहने...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना है मधुरेश जी
बहुत ही सुन्दर रचना...
bahut sunder shabdo ki mala piroyi hai.
ReplyDeleteबेहतरीन शाब्दिक संयोजन ..... अति सुंदर
ReplyDeleteआभार यशवंत भाई !
ReplyDeleteसादर
सुंदर...
ReplyDeletesundar...!!!
ReplyDeleteजब उसका अहसास हो तो कैसी भ्रान्ति ..सुन्दर शब्द सृजन..
ReplyDeleteभ्रांतियां भी कभी कभी शांति दे जाती है
ReplyDeleteसुन्दर रचना
उसके होने के एहसास में कोई भ्रांति नहीं...बहुत खूबसूरत रचना !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावमयी रचना...
ReplyDelete"तुम धीरे से पास बुलाना मुझे,
ReplyDeleteख़ुद का एहसास दिलाना मुझे,
ताकि ये लगे कि तुम तो हो,
तुम्हारे न होने की भ्रान्ति न हो."
....मनमोहक रचना
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाकई विशेष ...
ReplyDeleteतुम धीरे से पास बुलाना मुझे,
ReplyDeleteख़ुद का एहसास दिलाना मुझे,
ताकि ये लगे कि तुम तो हो,
तुम्हारे न होने की भ्रान्ति न हो.
सुंदर भावों से सजी आपकी प्रस्तुति काफी अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट अतीत से वर्तमान तक का सफर पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक सृजन, बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारें , अपनी प्रतिक्रिया दें , आभारी होऊंगा .